मुख्य समाचार

‘ताज’ के मुराद उर्फ Taha Shah नेगेटिव रोल के लिए भगवान से मांगते थे दुआ, बताई इसके पीछे की वजह

हर एक्टर का एक ड्रीम रोल होता है। उसके लिए वह ऊपरवाले से मन्नतें मांगता है, कोशिश करता है। कुछ ऐसा ही ताहा शाह ने हाल ही में ओटीटी पर आई सीरीज़ ‘ताजः डिवाइटेड बाई ब्लड’ में मुराद के किरदार के लिए किया। इसके लिए पहले किसी दूसरे कलाकार को तय कर लिया गया था लेकिन ताहा शाह का जूनून और किस्मत उन्हें इस किरदार के करीब ले आई। यशराज बैनर की ‘लव का दि एंड’ से करियर की शुरुआत करने वाले ताहा को आखिरी अपना मुकाम दिखना शुरू हो गया। वह दो हॉलिवुड फिल्म भी कर चुके हैं। अब ऐक्शन सीरीज और ग्रे किरदार करने का उनका सपना भी पूरा हो गया इसीलिए उन्होंने हमसे बातचीत के दौरान पहली बात यही कही कि मुराद ने मेरी सारी मुरादें पूरी कर दीं।

मेरी किस्मत में था ‘ताज…’ का हिस्सा होना

‘ताजः डिवाइडेड बाई ब्लड’ में पहले मुझे ऑडिशन देने का मौका ही नहीं मिला था। ज़ी-5 में मेरे एक मित्र हैं। मैं तीन साल से उन्हें बोल रहा था कि कुछ बेहतर आए तो बताइएगा। अचानक से उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि एक रोल है पर वह पहले से ही फाइनल किया जा चुका है, लेकिन मैं चाहता हूं कि एक बार तुम्हारा ऑडिशन उन्हें दिखाऊं। मैंने उन्हें ऑडिशन भेजा पर दो हफ्ते तक फोन नहीं आया। लगा कि बाकी किरदारों की तरह ये भी नहीं मिला पर फिर उनकी कॉल आ गई। उन्होंने यूके के डायरेक्टर और राइटर विलियम्स के साथ मेरी मीटिंग तय की। हम तीनों आधे घंटे के लिए मिले। मैं दो हॉलिवुड मूवीज़ कर चुका हूं, जिसमें से एक रिलीज हो चुकी और एक होनी बाकी है। मैंने उन्हें अपना काम दिखाया। मैंने ऐक्शन के प्रति अपना जुनून उनके सामने रखा। इतना कहने के बाद विलियम्स को यकीन हो गया कि मैं मुराद के लिए परफेक्ट हूं। उन्होंने डायरेक्टर को समझा-बुझाकर मना लिया। इसे किस्मत ही कहेंगे। मैंने बहुत से ऑडिशन दिए और मुझे एक बात समझ में आ गई कि आप जितना भी अच्छा कर लो, अगर काम आपको नहीं मिलना है तो नहीं मिलेगा। आखिरकार वही आपको मिलेगा, जो ऊपरवाले ने आपके लिए लिखा है।

आदित्य चोपड़ा सर ने कहा था कि नेगेटिव रोल करो

मैं यह कह सकता हूं कि मुराद ने मेरी मुरादें पूरी कर दीं। मुझसे आदित्य चोपड़ा सर ने कहा था कि तुम नेगेटिव किरदार करो। तुम्हारी आंखों से वैसा कुछ झलकता है। मैं कॉलेज जाने वाले लड़के और लवर बॉय के किरदार करके बोर हो जाता हूं। मुझे ऐसी भूमिकाएं नहीं करनी हैं। मैंने ऊपरवाले से दुआ मांगी थी कि ऐसा किरदार मिले, जो नेगेटिव हो और उसमें ऐक्शन का भरपूर मौका भी मिले। मेरे जीवन का जितना दर्द है, उसे मैं अपने किरदार में निकाल सकूं और मुराद ने मुझे यह मौका दे दिया।

मेरी जिंदगी से मिलता-जुलता है किरदार

इस किरदार की खास बात है कि वह सिर्फ तख्त के पीछे नहीं भाग रहा। असल में वह पिता का प्यार पाना चाहता है, जो उसे मिला नहीं। मेरे जीवन में भी कई ऐसे मौके आए, जब मैंने जी-तोड़कर मेहनत की पर लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। मैं सबसे आगे था लेकिन मुझे उसकी कोई सराहना नहीं मिली। मेरे दोस्त भी मेरा नाम नहीं ले रहे थे। आखिर क्यों? बिल्कुल इसी तरह मुराद भी है, जो बस अपने लिए पिता के दो मीठे बोल चाहता है। अगर ऐसा होता तो वह क्रूर और गुस्सैल नहीं होता।

चोट लगने के बावजूद सारे सीन शूट किए

मैंने मुराद के लिए चोट खाई और खून-पसीना भी बहाया। मुझे घोड़े ने लात मारी थी, जिससे घुटने के पास गहरी चोट आई थी। इसके बावजूद मैं दर्द में खड़ा रहा और सारे सीन दिए। मेरे आस-पास सैकड़ों आर्टिस्ट उस फाइट सीक्वेंस को शूट कर रहे थे और मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से उसमें रुकावट आए। मैं तीन घंटे की शूटिंग पूरी करके इलाज के लिए अस्पताल गया। लकड़ी से बनी तलवारों से कभी मुंह तो कभी गर्दन पर चोट खाई। मैंने सारे एक्शन सींस एक शॉट में दिए। मैंने पहले ही कह दिया था कि मैं ऐक्शन सीन्स करूंगा तो एक ही शॉट में। मैंने अपनी पहली ऐक्शन सीरीज में पूरी भड़ास निकाल दी। मुराद के लिए अपनी हड्डिया, खून-पसीना सब लगा दिया।

धर्मेंद्रजी का एक हाथ मेरे दो हाथ के बराबर

धर्मेंद्रजी से मेरी बहुत कम मुलाकात हुई। उनके साथ कोई सीन करने का सौभाग्य भी नहीं मिला। मैं उनका बचपन से फैन रहा हूं। मैंने उनकी कोई सुपरमैन वाली फिल्म देखी थी और मन में उनकी वही छवि छप गई। उनकी ‘तहलका’, ‘फरिश्ते’ जैसी फिल्में देखीं। एक फिल्म में तो वह प्लेन पकड़कर खींच रहे थे। इसके बाद मैं पूरी तरह उन पर फिदा हो गया। मैं पहली बार जब उनसे मिला तो लगा कि उन्हें इंडस्ट्री का हीमैन क्यों कहा जाता है। उनका एक हाथ मेरे दो हाथ के बराबर है। इतनी उम्र के बावजूद आज भी वह मजबूत कदकाठी वाले लगते हैं।

लखनऊ में मेरी मम्मी ने कुछ फ्लैट्स खरीदे थे। मम्मी का वहां आना-जाना लगा रहता है। मैं कभी नवाबों की नगरी नहीं आया हूं लेकिन मुझे लगता है कि एक प्रोजेक्ट की शूटिंग के सिलसिले में मैं मार्च में ही आ सकता हूं। अभी उस पर बातचीत चल रही है, जैसे ही सारी चीजें तय होती हैं, मैं लखनऊ के दीदार करने आ जाऊंगा।
-ताहा शाह, फिल्म एक्टर

नसीर सर के अंदर गज़ब का जुनून है

नसीर साहब के बारे में जितना कहें, वो कम है। उनका काम के प्रति जो समर्पण है, वो गजब है। ऐक्टिंग को लेकर उनका नजरिया सजीव है। वह कभी स्क्रिप्ट पढ़ते नजर आते तो कभी कोई किताब या फिर डायलॉग याद करते हुए। इंडस्ट्री में इतने साल गुजारने के बाद भी वह अपनी सीनियरिटी किसी के सामने जाहिर नहीं करते। उन्होंने हमारे साथ अपने शेक्सपियर वाले प्ले और फिल्म स्पर्श का अनुभव साझा किया था। मैं खुद चाहता था कि वो ‘स्पर्श’ का अनुभव बताएं क्योंकि मैं भी भविष्य में एक अंधे व्यक्ति का किरदार निभाना चाहता हूं। मुझे उनसे बहुत सी बातें सीखने को मिलीं। वह बिल्कुल दोस्त की तरह बात करते हैं। मेरी तमन्ना है कि आगे भी उनके साथ जरूर काम करूं।

मम्मी ने करवाया न्यू यॉर्क फिल्म अकैडमी में दाखिला

मेरी मम्मी सिंगल मदर हैं। उन्होंने अकेले ही भाई और मुझे बड़ा किया। 12वीं के बाद मैंने यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। मैंने देखा कि वह अकेले सारा काम करती हैं और मैं कॉलेज में मजे कर रहा हूं। मैंने सब छोड़ उनके साथ काम करना शुरू कर दिया। दो-तीन साल कंस्ट्रक्शन, सीमेंट-स्टील के इंपोर्ट जैसे काम किए लेकिन 2008-09 के पास रिसेशन आया और मुझे बड़ा नुकसान हो गया। मेरे पैसे डूबे तो मैं पागल होने लगा। उसके बाद बीच में मुझे मॉडलिंग का काम मिल गया। मैंने मॉडलिंग के लिए 2 साल पहले अपनी फोटोज दी थीं और दो साल बाद काम मिलना शुरू हुआ। मुझे उसमें मजा आने लगा। उस वक्त अबुधाबी में न्यू यॉर्क फिल्म अकैडमी खुल रही थी। मैंने सोचा कि खुद में ऐसा हुनर विकसित करूंगा, चाहे फिर जिंदगी में कोई भी परेशानी आ जाए, उसे कोई मुझसे छीन ना सके। मैं पहले तो अकैडमी में दाखिला नहीं ले रहा था लेकिन मम्मी मुझे कान पकड़कर शारजहां से तीन घंटे कार ड्राइव करके अबुधाबी ले आई। मेरी फीस दी। बस वहीं से मेरी ऐक्टिंग का सफर शुरू हो गया।

मुंबई में 5-6 महीने बाद मिली ‘लव का दि एंड’

मुझे अकैडमी एक साल की पढ़ाई के लिए लॉस एंजेलिस भेज रही थी पर मॉम ने मुझे मुंबई भेज दिया। वैसे इससे पहले मैंने अकैडमी में अपने टैलंट से सबको अपना दीवाना बना दिया। जो लोग कल तक मेरी तारीफ नहीं करते थे, वो मेरे साथ आने लगे। मैंने एडी, डायरेक्टर, लाइटिंग, साउंड जैसे सारे काम किए। टीचर्स कहती थीं कि तुम इसी के लिए बने हो। मुझे आखिरकार अपना पैशन मिल गया। इसके पहले मैं जितना भी मैं बेहतर कर लूं कोई मेरी तारीफ नहीं करता था। ये मेरे लिए बड़ा चेंज था। मैं मुंबई आया और कुछ महीनों का यहां कोर्स किया। मैंने पहले ही ठान लिया था कि बिना कोई फिल्म किए वापस नहीं जाऊंगा। 5-6 महीने के बाद मुझे यशराज बैनर की ‘लव का दि एंड’ मिल गई। मुझे तब पता भी नहीं था कि यशराज बैनर कितना बड़ा है।

मां ने सिखाया रोने से नहीं, मेहनत करने से होगा

लोग मुझसे कहते थे कि ऑडिशन वगैरह से कुछ नहीं होता, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। कई बार रिजेक्ट हुआ लेकिन मैंने करके दिखा दिया। मुझे आज तक किसी ने ऐसे ही काम नहीं दिया है। मैंने मॉम की दुआओं और अपनी मेहनत के दम पर सब पाया है। कई बार मेरी हिम्मत टूटी और मैं रोया भी। ये इतनी बार है, जिसे मैं गिनने बैठूं तो सुबह से शाम हो जाए। हर बार मॉम ने मुझे सहारा दिया। उन्होंने कहा कि रोने से नहीं, मेहनत करने से होगा। मेरी जिंदगी में मां, भाई और दोस्त तुषार का बहुत साथ रहा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button