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चीन से लिए एयरक्राफ्ट के चलते नेपाल को हो रहा नुकसान, ड्रैगन के सॉफ्ट लोन के जाल में फंसा भारत का पड़ोसी

नई दिल्ली :चीनी सॉफ्ट लोन के चक्कर में फंसा नेपाल 2014 से अब तक भी उससे बाहर नहीं निकल पाया है। नेपाल को इस वजह से हर साल 60 करोड़ नेपाली रुपये का नुकसान हो रहा है। चीन से लिए एयरक्राप्ट की वजह से नेपाल को यह नुकसान हो रहा है। अब नेपाल इन एयरक्राप्ट को बेच रहा है। एयरक्राफ्ट की कीमत एक अमेरिकी कंपनी आंकेगी जिसने सोमवार से अपना काम शुरू कर दिया है। एक महीने में यह कंपनी अपनी रिपोर्ट देगी।

नेपाल ने चीन से की थी 6 सिविल एयरक्राफ्ट की डील
नेपाल ने साल 2012 में चीन से 6 सिविल एयरक्राफ्ट की डील की थी। जिसमें दो 56 सीटर MA60 और चार 17 सीटर Y12E शामिल थे। नेपाल को यह एयरक्राफ्ट मिल भी गए लेकिन वह उड़ान ही नहीं भर पाए। इंटेलिजेंस एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक अब नेपाल ने इनकी मौजूदा कीमत को आंकने के लिए अमेरिकी असेट मैनेजमेंट कंपनी को काम सौंपा है। इस कंपनी की टीम ने सोमवार से अपना काम भी शुरू कर दिया और यह एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट नेपाल सरकार को सौंपेगी। उसके बाद इन एयरक्राफ्ट की नीलामी की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। चीन ने नेपाल को 6 एयरक्राप्ट खरीदने के लिए 6.67 बिलियन नेपाली रुपये अनुदान और रियायत लोन सहायता दी थी। इसमें 2.97 बिलियन रुपए अनुदान और 3.72 बिलियन रुपये सॉफ्ट लोन के तौर पर दिया। इस लोन पर 1.5 पर्सेंट की दर से इंटरेस्ट भी वसूला।

नेपाल को नहीं मिला फायदा लेकिन क्यों
नेपाल को इन एयरक्राफ्ट का कोई फायदा नहीं मिला। नेपाल को पहले दो एयरक्राफ्ट 2014 में मिले फिर 2017 और 2018 में दो दो एयरक्राफ्ट मिले। लेकिन पायलट, ट्रेनिंग और इंस्ट्रक्टर के अभाव में एयरक्राफ्ट उड़ान ही नहीं भर पाए। एक एयरक्राफ्ट क्रेश हो गया और बाकी के पांच एयरक्राफ्ट को साल 2020 में नेपाल सरकार ने ग्राउंडेड करने का फैसला लिया और 2021 में इन्हें किराए पर देने या बेचने का फैसला हुआ। कोई प्राइवेट कंपनी इन्हें किराए पर लेने को तैयार नहीं है। यहां तक कि नेपाल ने एयरक्राफ्ट बनाने वाली उन चीनी कंपनियों से भी अनुरोध किया था कि मौजूदा कीमत पर अपने एयरक्राफ्ट वापस खरीद लें लेकिन चीनी कंपनियों ने उससे इनकार कर दिया।

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