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बिहार के पुजारी परिवार से हैं प्रकाश झा, भूख में फुटपाथ से लिपटकर गुजारी हैं कई रातें

बिहार के बेतिया में जन्मे प्रकाश झा बॉलीवुड के टॉप फिल्ममेकर्स में से एक माने जाते हैं जिन्हें ‘अपहरण’, ‘गंगाजल’ और ‘राजनीति’ जैसी शानदार फिल्मों के लिए जाना जाता है। फेमस टेलिविजन शोज़ ‘हिप हिप हुर्रे’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ के अलावा हिट वेब सीरीज ‘आश्रम’ भी प्रकाश राज की ही देन है। आज 27 फरवरी को प्रकाश राज अपना 71वां जन्मदिन मना रहे हैं। आइए जानते हैं कि कैसे किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रकाश झा ने मुश्किल जिंदगी बिताते हुए अपने लिए ये मुकाम बनाने में सफल रहे, फिल्मों से पहले कैसी होती थी उनकी दुनिया।

प्रकाश झा का जन्म बिहार के बेतिया जिले में एक पंडित और किसान परिवार में हुआ था। यहां एक्टिंग को लेकर दूर-दूर तक कोई सपना नहीं था, हां वह एक पेंटर बनने का ख्वाब जरूर देखा करते थे। बताया जाता है कि अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए प्रकाश झा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में बैचलर की पढ़ाई छोड़ दी थी और पहुंच गए मुंबई के बेस्ट कॉलेज में से एक जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स।

    प्रकाश झा पुजारी परिवार से हैं

    प्रकाश झा से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि बिहार के गांव से उन्हें ऐसा क्या मिला कि फिल्म बनाने की कला की ओर मुड़े? इसपर उन्होंने कहा था, ‘वहां पर हमारे परिवार में ऐसी कोई कला या परफॉर्मेंस जैसी चीजों के खास मायने नहीं होते। ब्राह्मण परिवार से था, हमलोग पुजारी परिवार से हैं। मैं आर्मी स्कूल में गया और वहां जाने के बाद पेंटिंग जैसी कला मुझे अच्छी लगती थी। लेकिन तब पढ़ाई-लिखाई और आर्मी में जाना, मेरे सिर पर बस यही सवार था।’

    प्रकाश झा ने कहा- रेग्युलर सिविल सर्विसेस, आईएएस ..ये सब नहीं करना था

    उन्होंने कहा था, ‘जब मैं नैशनल डिफेंस अकैडमी नहीं गया तो दिल्ली यूनिवर्सिटी जॉइन की मैंने, तब जाकर मेरी आंख खुली कि ये भी बहुत उम्दा प्रफेशन है करियर में। मंडी हाउस में बड़े-बड़े कलाकारों की पेंटिंग देखी, परफॉर्मेंस देखे तो उस वक्त से थोड़ा दिल करने लगा कि मुझे रेग्युलर पढ़ाई, रेग्युलर सिविल सर्विसेस, रेग्युलर आईएएस ..ये सब नहीं करना।’

    गोवा की एक डॉक्यूमेंट्री से हुई शुरुआत

    प्रकाश झा ने 1973 में पूणा इंस्टिट्यूड जॉइन किया था। संसद टीवी से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘तब गिरिश कर्नार्ड डायरेक्टर हुआ करते थे और एक्टिंग स्कूल स्टूडेंट्स के साथ उनका कुछ प्रॉब्लम हो गया था। उस वक्त नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, टॉम ऑल्टर वगैरह हमारे बैच के साथी थे। जब तक वो मामला सुलधा नहीं तब तक इंस्टिट्यूट बंद ही रहा तो हमें मुंबई रहना पड़ा। चूंकि कुछ करना था इसलिए स्क्रिप्ट लिखकर स्टेट गवर्नमेंट या फिल्म्स डिविजन को सम्पर्क करना शुरू किया डॉक्यूमेंट्री के लिए। मुझे मिल गई गोवा की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की और जिंदगी की शुरुआत यहीं से हुई। फिर काम करने लग गया तो इंस्टिट्यूट जाने की जरूरत ही नहीं हुई।’

    रेखा, नवीन निश्चल की फिल्म की शूटिंग देख लिया फैसला

    प्रकाश झा मुंबई आए थे जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में एडमिशन लेने, लेकिन इसी बीच उन्हें फिल्म ‘धर्मा’ की शूटिंग देखने का मौका मिला। इस फिल्म में रेखा, नवीन निश्चल और प्राण जैसे कलाकार थे। उन्होंने कहा- सुबह से रात तक ये शूटिंग देखते देखते लगा कि ये सबसे बढ़िया काम है, जिंदगी में यही कर लें तो अच्छा रहेगा। उन्होंने कहा- चांद साहब डायरेक्टर थे उस फिल्म के तो 3-4 दिन मैंने उनका असिस्टेंट का काम किया और उसके बाद ट्रेन पकड़कर पूणा आ गया।

    कोने में खड़ा होकर ये सब देखता रहा

    प्रकाश झा ने ‘धर्मा’ की उस शूटिंग का किस्सा आगे सुनाते हुए कहा, ‘फिल्म बनाने की जो प्रक्रिया थी, जिस तरह से कपड़े प्रेस होकर हैंगर में जा रहे थे, ट्रॉलियां लग रही थीं, लाइटें लग रही थीं, म्यूजिक बज रहा था, डांस के रिहर्सल चल रहे थे, कोने में खड़ा होकर ये सब देखता रहा था और डर के मारे में कुछ बोल नहीं रहा था, हिल भी नहीं रहा था कि कहीं कोई बाहर नहीं निकाल दे। पूरे दिन भर वो शूटिंग देखी, बड़ा मजा आया और शाम तक मैंने डिसाइड कर लिया कि यही करना है जिंदगी में।’

    घर से 300 रुपये लेकर निकल गए थे प्रकाश झा

    बताया जाता है कि शुरुआती दिनों में प्रकाश झा के पास पैसों की काफी दिक्कतें थीं। कहते हैं कि प्रकाश झा ने कैमरा खरीदा और अपने घर से 300 रुपये लेकर अपने सपनों के साथ निकल चुके थे। परिवार को उनका ये फैसला पसंद नहीं आया और कहते हैं कि इस वजह से उनके पिता भी उनसे नाराज हो गए थे। इस हालात में प्रकाश ने घर के साथ-साथ अपने रिश्तों को भी पीछे छोड़ दिया। बताया जाता है कि प्रकाश और उनकी फैमिली का रिश्ता इस कदर खराब हो गया था कि पिताजी ने उनसे करीब 5 साल तक बात भी नहीं की।

    न रहने को घर था और न पेट भरने के लिए खाना

    प्रकाश झा के पास न तो खाने के ही पैसे थे और न ही रेंट देने के। अपने स्ट्रगल के दिनों में उन्हें कभी फुटपाथ पर सोना पड़ा तो कई रात भूखे पेट भी रहना पड़ा उन्हें। हालांकि, परिस्थितियां बुरी आईं लेकिन उन्होंने मार कभी नहीं मानी।

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