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तो तैयार हो रहा है तीसरा फ्रंट? ममता के धरने से क्यों बढ़ेगी राहुल गांधी की मुश्किल समझिए

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल का समय हो लेकिन बीजेपी के साथ विपक्षी धड़े में इसकी तैयारियां लगातार जारी है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के बाद तीसरे मोर्चे की कवायद भी तेज हो गई है। अभी तक भारत जोड़ो यात्रा से विपक्षी नेता के रूप में बढ़त ले चुके राहुल गांधी को अब ममता बनर्जी चुनौती देने जा रही हैं। ममता ने पश्चिम बंगाल के साथ केंद्र सरकार के कथित पक्षपातपूर्ण रवैये के विरोध में कोलकाता में दो दिन तक धरना देने का फैसला किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता की इस लड़ाई के जरिये ममता बीजेपी को साधने के साथ ही विपक्षी दलों को भी संदेश देंगी।

तीसरे मोर्चे की कवायद तेज
ममता बनर्जी ने हाल ही में कोलकाता में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। ममता की अखिलेश से इस मुलाकात को तीसरे मोर्चे की कवायद में प्रमुखता से देखा जा रहा है। इसके बाद ममता अब पड़ोसी राज्य ओडिशा के अपने तीन दिवसीय दौरे पर जाने वाली हैं। यहां वह ओडिशा के अपने समकक्ष नवीन पटनायक से मुलाकात कर सकती हैं। भले ही ममता का यह निजी दौरा है लेकिन इसमें भी नवीन बाबू को अपने पक्ष में लाने के लिए ममता जरूर जोर लगाएंगी। टीएमसी से एक नेता ने कहा है कि यह बैठक महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में एक साल में लोकसभा चुनाव होने हैं। भाजपा विरोधी आंधी में बनर्जी एक प्रेरक शक्ति हैं। दोनों मुख्यमंत्री चुनाव की रणनीति पर चर्चा कर सकते हैं। राजनीति में स्पष्ट छवि वाले नवीन पटनायक अभी तक कांग्रेस और बीजेपी दोनों से बराबर दूरी बनाए हुए हैं। खास बात है कि यूपी और कोलकाता के बाद ओडिशा ऐसा राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दल की मजबूत स्थिति है।
राहुल के लिए कैसे बढ़ेगी मुश्किल?
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस के लिए जमीनी तौर पर लोगों का समर्थन दिखा था। माना जा रहा है कि इस यात्रा से कांग्रेस को जरूर फायदा हुआ है। साथ ही विपक्षी नेता के रूप में राहुल गांधी ने खुद को मोदी के मुकाबले में मजबूती से स्थापित भी किया है। अब चूंकि ममता ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। इससे राहुल की मुश्किल बढ़ती नजर आ रही हैं। ममता बनर्जी ने रविवार को आरोप लगाया कि बीजेपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ब्रिटेन में की गई टिप्पणियों के लिए संसद की कार्यवाही बाधित कर उन्हें ‘हीरो’ बनाने की कोशिश कर रही है ताकि ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाया जा सके। इस टिप्पणी से साफ है कि इस मुद्दे पर ममता और कांग्रेस की राह अलग-अलग है। वहीं, ममता और अखिलेश की मुलाकात के बाद दोनों दलों ने साफ कहा कि वे बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी रखेंगे। साथ ही चुनाव से पहले क्षेत्रीय दलों तक पहुंच स्थापित करेंगे।
कौन जीतेगा नहीं…किसे हराना है यह जरूरी
विपक्षी मोर्च में दक्षिण का किला संभालने वाले डीएमके की तरफ से कांग्रेस के लिए हालांकि राहत की खबर है। तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन यह कह चुके हैं कि गैर कांग्रेसी विपक्ष गठबंधन व्यावहारिक नहीं है। स्टालिन का कहना है कि बीजेपी को हराने के लिए हमें अपने मतभेदों को छोड़ना होगा। स्टालिन का कहना है कि 2024 के चुनाव इस बात पर निर्भर नहीं है कि कौन जीतेगा बल्कि इस बात पर निर्भर है कि हमें किसे हराना है। वे कहते हैं कि हमें यह देखना होगा कि सत्ता पर किसका नियंत्रण है।
2024 के लिए बीजेपी की राह आसान हो रही है?
इसके अलावा दिल्ली के सीएम केजरीवाल भी तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे हैं। केजरीवाल गैर कांग्रेसी और गैर बीजेपी सीएम को एकजुट करने में जुटे हैं। केजरीवाल ने 5 फरवरी को 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बैठक का निमंत्रण भी दिया था। हालांकि, 18 मार्च को होने वाली यह बैठक हुई ही नहीं। अगर केजरीवाल की कवायद सफल नहीं होती है। ममता बनर्जी और अखिलेश यादव कांग्रेस से दूरी बनाकर रखते हैं तो इससे बीजेपी के लिए 2024 की राह आसान हो जाएगी।

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