कुछ बड़ा होने वाला है… PoK बॉर्डर से ‘जासूस’ ने भेजा था खुफिया इनपुट, करगिल वॉर की इनसाइड स्टोरी
नई दिल्ली: जासूसों का काम कुछ इस तरह का होता है कि कभी-कभार उन्हें क्रेडिट भी नहीं मिलता। अक्सर जब कोई घटना घटती है तो कह दिया जाता है कि इंटेलिजेंस फेल्योर था। भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी लड़ाई करगिल में लड़ी गई थी, जो परवेज मुशर्रफ ने जबर्दस्ती थोपी थी। बहुत से लोग ऐसा मानते आए हैं कि उस समय भारत का इंटेलिजेंस फेल रहा था। क्या सच में ऐसा था? सच्चाई कुछ अलग है। उस समय लेह में तैनात एक जासूस ने अपने चीफ के जरिए सरकार को ‘रेड सिग्नल’ भेजा था। लेकिन उस खुफिया इनपुट को गंभीरता से नहीं लिया गया। RAW के पूर्व चीफ विक्रम सूद बताते हैं कि अक्टूबर 1998 में ही एजेंसी ने एक गुप्त रिपोर्ट भेजी थी कि वहां सैनिकों की मूवमेंट हो रही है और ऐसा लग रहा है कि वे कुछ बड़ा प्लान कर रहे हैं। खुफिया एजेंसी ने ‘युद्ध’ शब्द का भी इस्तेमाल किया था और कहा था कि यह जल्द हो सकता है। भारत के जासूसों ने खबर दी थी कि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को शांतिपूर्ण वाली लोकेशन जैसे मांगला, गुजरांवाला और लाहौर से पीओके भेजा है। इंटेलिजेंस का आकलन था कि कुछ न कुछ होने वाला है। उस समय किसी को नहीं पता था कि क्या होने वाला है। छह महीने से भी ज्यादा समय पहले बता दिया गया था कि कुछ महीने से ऐसा चल रहा है और हम यह कह सकते हैं कि वे कुछ प्लान कर रहे हैं। पूर्व रॉ चीफ सूद ने कहा कि लेकिन इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया।
बॉर्डर पर थी हलचल तो बस यात्रा क्यों हुई?
क्या करगिल वॉर के बारे में इंटेलिजेंस इनपुट को सरकार ने इग्नोर किया? ANI को दिए इंटरव्यू में सूद ने कहा कि तब कहा गया था कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है। क्या पॉलिटिकल लीडरशिप ने गलती की? इस पर वह कहते हैं कि RAW एक ऐसी एजेंसी है जो सूचना की सप्लाई करती है। हम सुझाव देते हैं और वहीं हमारा रोल खत्म हो जाता है। इसके आगे पॉलिटिकल मास्टर या सूचना पाने वाले किसी अन्य को तय करना होता है कि उस सूचना का क्या करना है। अगर सरकार या सूचना पाने वाली लीडरशिप इसे ‘नहीं हो सकता’ कहती है तो एजेंसी कुछ भी नहीं कर सकती है।
छह महीने बाद खुफिया एजेंसी ने एक और रिव्यू किया था। 1999 में वह अप्रैल का महीना था। इसमें कहा गया कि उनकी (पाकिस्तान) मंशा आक्रामक है। पिछले 8-9 महीनों में उत्तरी कमान ने उस इलाके में 9 गुना ज्यादा गाड़ियों का मूवमेंट नोट किया है। यह गाड़ी पाकिस्तानियों की थी। वह भी एक इंडिकेटर था कि यह तो जंग का आगाज है। क्यों इतने सैनिक, साजोसामान की मूवमेंट हो रही है? करगिल से पहले मिलिट्री इंटेलिजेंस, रॉ और आईबी का भी इनपुट दिया जा चुका था।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब यह सूचना मिल रही थी तो लाहौर बस यात्रा क्यों हुई? रॉ के पूर्व चीफ कहते हैं, ‘मैं नहीं जानता। वह एक राजनीतिक फैसला था।’ सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री खुद पाक जाने का इतना बड़ा फैसला लेते हैं जबकि तीन सोर्स से पाकिस्तानियों के मंसूबे की जानकारी मिल रही थी। इस पर सूद कहते हैं कि मैं नहीं जानता कि उन्हें पता था या नहीं। जून 1998 में IB चीफ का नोट था जिसमें पीओके में हलचल की सूचना दी गई थी। कहा गया कि कुछ हो रहा है। वह रिपोर्ट सबको भेजी गई थी। पीएम के प्रिंसिपल सेक्रेट्री, गृह सचिव, संयुक्त खुफिया समिति, कैबिनेट सेक्रेट्री को पता था और शायद गृह मंत्री को भी जानकारी थी।
मुशर्रफ का ऑडियो भी मिला था
RAW ने क्या खुफिया इनपुट का कोई प्रूफ सरकार को दिया था? इस पर विक्रम सूद ने बताया कि लोकेशन बताने के लिए सैटलाइट मैप दिए गए थे, एक टेप भी दिया गया था जिसमें मुशर्रफ जनरल अजीज खान से बात करते सुने गए थे। जब पाक आर्मी ने करगिल में लड़ाई छेड़ी तो शुरू में वे ऊंचाई पर थे और मजबूत पोजीशन में भी। मुशर्रफ ने बीजिंग से अजीज को फोन किया था और कह रहे थे, ‘इनकी तो टूटी (रिमोट कंट्रोल जैसा भाव) हमारे हाथ में है।’ मतलब था कि पूरा ऑपरेशन हमारे नियंत्रण में है। वह कह रहे थे कि मियां नवाज शरीफ को ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है। उन्हें कहना कि सब ठीक है और हम इसे जारी रखेंगे। उस बातचीत ने प्रूफ दे दिया था कि पाकिस्तान आर्मी पूरी तरह से शामिल है।
भारत-पाकिस्तान के बीच इस लड़ाई के बारे में रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत ने भी 2018 में दावा किया था कि पाकिस्तानियों की तरफ से मूवमेंट के बारे में रिपोर्ट काफी पहले ही तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भेजी गई थी। यह जानना भी दिलचस्प है कि 1998 में करगिल के इलाके में पाकिस्तानी सैनिकों के होने की जानकारी एक इंटेलिजेंस ऑफिसर ने IB चीफ को दी थी। यह बात तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचाई जानी थी। 18 साल के बाद उस अधिकारी को वीरता पुरस्कार दिया गया था। चंद्र सेन सिंह लेह में तैनात थे, जहां उन्होंने एलओसी पर पाकिस्तान की तरफ सैनिकों की मौजूदगी बढ़ने की कई रिपोर्ट तैयार की थी। उनके डॉक्यूमेंट के आधार पर ही तत्कालीन आईबी चीफ दत्ता ने जून 1998 में सरकार को हस्ताक्षर के साथ नोट भेजा था। एक साल बाद लड़ाई छिड़ी। बताते हैं कि 40 से ज्यादा रिपोर्ट तब आईबी ने करगिल के आसपास के माहौल को लेकर तैयार की थी।