किसके पास कितना कंट्रोल? केंद्र-राज्य सरकारों के संबंधों पर क्यों अब तक नहीं मिला समाधान

नई दिल्ली: केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंधों में कानूनी सीमाओं और अधिकारों पर आज तक स्पष्टता क्यों नहीं बन सकी है? क्यों आज भी आए दिन मामले कानूनी चौखट तक पहुंचते रहते हैं? गवर्नर के अधिकार से लेकर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकार के बारे में क्यों उलझन बनी रहती है? यह सवाल तब उठे जब पिछले दिनों महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने नए-नए आदेश जारी किए। दरअसल ऐसे मसलों पर पूर्व में भी कई आदेश आ चुके हैं। सरकार ने इस मामले पर स्पष्टता लाने के लिए पूर्व में उच्चस्तरीय कमीशन तक बनाए, लेकिन उलझन अब तक बनी रही।
सुप्रीम कोर्ट ने संघीय ढांचे पर क्या कहा?
सर्विसेज कंट्रोल किसके हाथ में हो, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनी हुई सरकार के पास ब्यूरोक्रेट का कंट्रोल होना चाहिए। अगर चुनी हुई सरकार का कंट्रोल ऑफिसर पर नहीं होगा तो फिर जिम्मेदारी और जवाबदेही खत्म हो जाएगी। केंद्र सरकार का राज्य के मामले में अधिकार सीमित है। यह सुनिश्चित किया गया है कि राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार टेकओवर न करे। फेडरल सिस्टम के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य के अधिकार क्षेत्र तय किए गए हैं। संघीय संविधान में दो तरह की सरकार काम करती है एक राष्ट्रीय स्तर पर और दूसरा राज्य लेवल पर।
क्या है सरकारिया आयोग की सिफारिश?
केंद्र और राज्य के बीच समन्वय बनाने को लेकर शुरू से प्रयास किया जाता रहा है। लेकिन केंद्र और राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें बनी तो तनाव बढ़ता ही गया। राज्यों की ओर से मांग उठी कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंध को रिव्यू करने के लिए आयोग का गठन हो। इसके लिए समय समय पर चार आयोग बने। सबसे पहले 1970 में प्रशासनिक सुधार आयोग, फिर राजमत्रार आयोग, इसके बाद 1971 में भगवान सहाय समिति और फिर 1987 में सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी। 1983 में जस्टिस रणजीत सिंह सरकारिया की अगुवाई में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया जिसने 1987 में रिपोर्ट दी जिसकी कई सिफारिशों को स्वीकार किया गया। इससे पहले के तीनों आयोग की सिफारिश अमान्य की गई।
समय के साथ आदर्श स्थिति बन जाएगी
संवैधानिक मामलों के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि संविधान बनाते वक्त देश की जो परिस्थितियां थीं उसे ध्यान में रखा गया और फेडरल सिस्टम बनाया गया। जब देश आजाद हुआ तब भी पूरे विश्व में अमेरिकन फेडरल सिस्टम का सबसे सटीक उदाहरण था। साथ ही कहा कि संविधान बुरा या अच्छा नहीं होता, बल्कि इसे चलाने वाले लोगों पर निर्भर है। जो आदर्श स्थिति है उसमें भारत एक सहयोगात्मक संघीय ढांचा वाला देश है। यानी केंद्र और राज्य को मिलकर चलना है। अगर समय-समय पर कुछ टकराव होता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से दुरुस्त किया जाता रहा है। समय के साथ इसमें सुधार होता रहेगा और एक समय के बाद यह आदर्श स्थिति में तब्दील हो जाएगा।