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ओबीसी आरक्षण पर कैसे बढ़ेगी यूपी की गाड़ी, सुप्रीम कोर्ट से राहत की उम्मीद

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन और एक शासनादेश को रद्द करते हुए OBC रिजर्वेशन के बगैर जल्द से जल्द स्थानीय निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया है। संविधान में SC/ST और महिलाओं के आरक्षण के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं। लेकिन ओबीसी आरक्षण पर कई कानूनी पेच और विवाद हैं। हाईकोर्ट के अनुसार, UP सरकार सुप्रीम कोर्ट के बताए ट्रिपल टेस्ट फॉर्म्युले पर अमल करने में विफल रही है। संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले राज्य सरकार पर बाध्यकारी हैं। एक और बाध्यता यह है कि संविधान के अनुच्छेद-243 के अनुसार पांच साल का टर्म खत्म होने से पहले चुनाव कराना जरूरी है। इन सबके बीच हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस राम अवतार सिंह की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय आयोग के गठन के साथ योगी सरकार ने साफ कर दिया है कि ओबीसी आरक्षण के साथ ही चुनाव होंगे।

संविधान में 73वें और 74वें संशोधन से 1993 में गांवों और शहरों में पंचायती राज की शुरुआत हुई। वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने के कृष्णमूर्ति बनाम भारत सरकार मामले में पहली बार निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के संदर्भ में ट्रिपल टेस्ट लागू किए जाने की बात कही। 2021 में शीर्ष अदालत ने विकास किशनलाल गवली बनाम महाराष्ट्र मामले के फैसले में ट्रिपल टेस्ट के तीन मापदंड बताए, जो इस तरह हैं।

  • स्थानीय निकायों में ओबीसी वर्ग के पिछड़ेपन की प्रकृति और पहचान की जांच के लिए राज्यों में आयोग का गठन हो।
  •  आयोग द्वारा शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं के अनुसार निकायवार तरीके से आरक्षण का पुनरीक्षण हो।
  • अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के सभी वर्गों के लिए कुल आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो।

जनगणना का सवाल

  • इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार भी आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। लेकिन EWS आरक्षण पर शीर्ष अदालत के हालिया फैसले के बाद इस सीमा को पार करने का संवैधानिक रास्ता खुल गया है।
  • तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और महाराष्ट्र में आरक्षण के दायरे को बढ़ाने के लिए सरकारें विधानसभा से प्रस्ताव पारित करा रही हैं।
  •  इन मामलों के समाधान के लिए जनसंख्या के वास्तविक आंकड़े चाहिए होंगे। केंद्र सरकार ने 2011 की जनसंख्या में पिछड़ेपन के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया है। संविधान के अनुसार, जनगणना का विषय केंद्र सरकार के अधीन आता है। लेकिन इन न्यायिक फैसलों की आड़ में बिहार से शुरू हो रही जातिगत जनगणना की पहल को अन्य राज्य भी अपना सकते हैं।
  •  उत्तर प्रदेश के 1994 के आरक्षण अधिनियम के तहत अनुसूची-1 में लगभग 79 वर्गों के नोटिफाइड ओबीसी को चुनावों में आरक्षण का लाभ मिलेगा। महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की बात भी कही गई है।
  • इंदिरा साहनी फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में मार्च 1993 में पिछड़े वर्ग आयोग का गठन हुआ। उसके बाद 1996 में पिछड़े वर्ग आयोग के लिए कानून बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले की दुहाई देते हुए राज्य सरकार ने दावा किया कि आरक्षण की कुल लिमिट 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होने से ओबीसी को आरक्षण सही है।
  •  सरकार द्वारा 7 अप्रैल 2017 को जारी शासनादेश के अनुसार जून 2022 में सभी जिलाधिकारियों को ओबीसी की गणना और सर्वेक्षण के आदेश दिए थे। नगरपालिका चेयरमैन पदों के रोटेशन के बारे में सरकार ने कहा कि यदि इस बारे में कोई विशेष शिकायत हो तो उसका निराकरण किया जा सकता है।

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