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इलेक्ट्रिक गाड़ियों से क्या कम होगा प्रदूषण

स्विट्जरलैंड ने इलेक्ट्रिक वाहनों बढ़ावा देने के बजाए नियमित करने का फैसला किया है। वहां की सरकार एक ‘ऑर्डिनेंस ऑन रेस्ट्रिक्शंस एंड प्रोहिबिशन ऑन द यूज ऑफ इलेक्ट्रिक एनर्जी’ लाई है, जिसमें सीमित सेवाओं के लिए ही इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग की अनुमति देने की बात है। इस ऑर्डिनेंस के पीछे इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन में फॉसिल एनर्जी (कोयला जलाने) से बढ़ते वायु प्रदूषण का हवाला दिया गया है। बात भारत की करें तो यहां बिजली उत्पादन के लिए दुनिया में सबसे अधिक कोयला जलाया जाता है।

मिलता बढ़ावा
वर्ष 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के खरीदारों को आयकर में छूट देते हुए इन पर जीएसटी 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दी थी। मार्च 2019 में डिपार्टमेंट ऑफ हेवी वीइकल्स ने फेम इंडिया-II के तहत 10 हजार करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि का प्रावधान किया, जिसे 3 वर्षों में खर्च करना है। केंद्र सरकार की तर्ज पर राज्य सरकारें भी इस सेक्टर को बढ़ावा दे रही हैं। वहीं अमेरिका, चीन और बाकी यूरोपीय देश भी इन पर भारी-भरकम सब्सिडी दे रहे हैं। चीन इन पर 50 तो यूके 35 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रहा है।

क्या वास्तव में इलेक्ट्रिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या का श्रेष्ठ समाधान है? आइए जानने की कोशिश करते हैं:

  • बिजली उत्पादन में भारत से आगे सिर्फ चीन और अमेरिका ही हैं। लेकिन इस उजले पक्ष का एक स्याह पहलू यह भी है कि देश में बनने वाली कुल बिजली का 57.7 फीसदी हिस्सा कोयले से बनता है। आश्चर्य नहीं कि विश्व के 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 7 शहर भारत के हैं।
  • कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट और अर्बन एमिशन के आंकड़ों के मुताबिक, देश में कोयले से बिजली उत्पादन का लक्ष्य 2014 के 159 गीगावॉट की तुलना में 2030 तक 450 गीगावॉट करने का है। इससे कोयले की वार्षिक खपत में 660 की तुलना में 180 करोड़ टन बढ़नी है।
  • नीति आयोग बताता है कि कोयले से बिजली बनाने में पूर्व में कार्बन डायॉक्साइड के होने वाले उत्सर्जन 159 करोड़ टन प्रतिवर्ष के बजाए 432 करोड़ टन का उत्सर्जन होगा।
  • इससे वायु प्रदूषण जनित रोगों के कारण प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के भी दोगुने से तीन गुने (186500 से बढ़कर 229500) तक होने की आशंका जताई जा रही है। अकेले सांस और अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़कर 4.27 करोड़ हो जाने की आशंका है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए और अधिक बिजली चाहिए, जिससे और अधिक कोयला जलाना होगा। इससे वायु प्रदूषण में और अधिक वृद्धि देखने को मिलेगी।
  • ETS ज्यूरिख के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 7,861 कोल पावर प्लांट्स के दुष्प्रभावों का अध्ययन किया और भारत के कोल प्लांट्स को दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषणकारी पाया। यानी इलेक्ट्रिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं है बल्कि समस्या को बढ़ाने वाला ही है।
  • आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में देश में कुल 759,600 इलेक्ट्रिक वाहन बिके। 2025 तक इसमें 10 गुना से अधिक की वृद्धि का अनुमान है। इसके साथ ही प्रयोग के बाद बेकार होने वाली बैटरियों में भी इतनी ही वृद्धि अनुमानित है।
    भारत में लिथियम आयन बैटरियों का इस्तेमाल अधिकतम हो रहा है, जबकि देश में इसके निस्तारण की क्षमता अभी नगण्य के बराबर है। बैटरियों से भारी मात्रा में निकलने वाले लेड, खतरनाक धातुओं और रसायनों से बड़ी चुनौती पैदा होनी है।
  • अभी तक विकसित देशों में भी पुरानी लिथियम बैटरियों से लिथियम को पूरी तरह निकालने की क्षमता विकसित नहीं हो सकी है। यूरोपीय देश भी खराब बैटरियों में से महज 5 फीसदी लिथियम ही निकाल पाते हैं। बाकी लिथियम या तो जमीन में गाड़े जाते हैं या फिर जलाए जाते हैं।

साफ है कि भारत में स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाना अधिक कारगर प्रतीत नहीं होता है। इसके प्रदूषण को दिल्ली या बाकी महानगरों से दूसरे राज्यों में ट्रांसफर करने भर की तरकीब बनकर रह जाने की संभावना ज्यादा है।

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