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ताबड़तोड़ कमाई करने वाली फिल्मों पर मनोज बाजपेयी ने कसा तंज- जरूरी नहीं कि वो मूवीज अच्छी हों

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘अलीगढ़’, ‘नाम शबाना’ और ‘सत्याग्रह’ जैसी फिल्मों से अपनी ऐक्टिंग का दम दिखाने वाले नैशनल अवॉर्ड विनर ऐक्टर मनोज बाजपेयी इन दिनों फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ के ट्रेलर में दिखाई दे रहे हैं। इस खास बातचीत में मनोजकेने फिल्म, देश की न्याय प्रणाली, बॉलिवुड की खस्ता हालत और ओटीटी के बारे में बात की। एक्टर ने साथ ही ‘फैमिली मैन सीजन 3’ के बारे में बताया है कि वो कब तक आएगी। आइए बताते हैं कि उन्होंने इस बातचीत में क्या-क्या खुलासे किए हैं।

– कोर्ट में इन दिनों सेम सेक्स मैरिज बात हो रही है। आपने तो एक फिल्म भी की है इस मुद्दे पर। आपका इस मुद्दे पर क्या सोचना है?

इसमें जो पूरी कार्रवाई चली, उसे मैं लगातार पढ़ता और फॉलो करता रहा। बहुत सारी नई जानकारियां मिलीं। ना सिर्फ एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग इसे बारीकी से देख रहे थे बल्कि बहुत सारे सजग नागरिक भी इस पूरी कार्रवाई को देख रहे थे। इस केस में पूरी बहस चली जो कि बहुत ही सकारात्मक बहस है। किसी भी स्वस्थ समाज में यह बहस बहुत जरूरी है। इस बहस में जो भी तर्क दिए गए, वह दिमाग को खोलने वाले तर्क थे, बहुत कुछ सीख भी रहा था मैं। मेरा अपना मानना है कि इस तरह की सकारात्मक बहस जब होती है, तो उसका नतीजा अच्छा ही निकलता है।

– आपकी वेब सीरीज ‘फैमिली मैन 3’ कब आ रही है?

यह कमाल ही है कि ‘फैमिली मैन 3’ को लेकर दर्शक ही नहीं, हम भी बहुत उतावले हैं। लेकिन अभी तक मेकर्स की ओर से हमें फोन आना बाकी है कि आओ शूटिंग करनी है। वैसे यह किसी भी समय हो सकता है। हमें बस तैयारी करनी है और शूटिंग करनी है। अभी तक ना शूटिंग हुई है और ना कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ है इसे लेकर। जब मेकर्स इसका फैसला लेंगे तो काम होने लगेगा।

– अभी बॉलिवुड की हालत खराब है। तो फिल्म रिलीज से पहले प्रड्यूसर और डायरेक्टर क्या सोच रहे हैं आजकल?

आप बिल्कुल सही कह रहे हैं कि फिल्में उस तरह से नहीं चलीं। बीच-बीच में कोई फिल्म अच्छी चल गई लेकिन बाद में और फिल्में नहीं चलती हैं। और मैं यह नहीं मानता कि अच्छी फिल्म है तो चलेगी ही। मेरा इस मामले में थोड़ा अलग सोचना है। क्योंकि पहले भी जो सारी फिल्में चलती थीं, उनके बारे में आप नहीं कह सकते कि सब अच्छी थीं। ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना ही फिल्म को अच्छी कहने का मापदंड रह गया था। मगर हर फिल्म जो चलती है, ऐसा नहीं है कि वह अच्छी ही है। और हर फिल्म जो नहीं चलती है, ऐसा नहीं है कि वह बुरी ही होती है। महामारी के बाद अभी भी लोगों का घरों से निकलना और थिएटर तक जाना, वक्त ले रहा है। लेकिन मैं जानता हूं कि यह चीजे धीरे-धीरे सही हो जाएंगी। यह अभी एक-डेढ़ साल की बात है, उसके बाद सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आएगा। मैं खुद भी चाहता हूं कि थिएटर में फिल्में आएं और साथ ही माध्यमों के बीच एक बैलेंस बने।

– आप कह रहे हैं कि सिर्फ कमाई ही अच्छी फिल्म का मापदंड थी। लेकिन ज्यादा कमाई मतलब ज्यादा लोग इसे देख रहे हैं। तो यह आसान तरीका है मापने का। आखिर इसे ना मानें तो किसे मानें?

जाहिर सी बात है कि जो कमाई होती है उसका दर्शकों से कुछ लेना-देना नहीं होता। फिल्म की कमाई का लेना-देना फिल्म प्रड्यूसर और डिस्ट्रिब्यूटर से जुड़ा होता है। अगर कोई मापदंड यह बनाए कि पैसा कमाने वाली ही अच्छी फिल्म है, यह कहां तक जायज़ है। फिल्म किसी खास दर्शक को कैसी लगी, इस बारे में बात करना बहुत जरूरी है, ना कि इस पर बात करना कि फिल्म ने इतने करोड़ कमाए और इसलिए फिल्म अच्छी है। जब तक इस पर बात नहीं होगी तब तक सिनेमा का कॉन्टेंट के स्तर पर ग्रोथ नहीं होगा।

– सिनेमा थिएटर तो खुल गए हैं। तो आप अपनी फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ को ओटीटी पर क्यों ला रहे हैं?

हमने बहुत सारा रिसर्च किया और यह जी स्टूडियोज का फैसला था कि हम इस फिल्म को ओटीटी पर ही लाएंगे। इसे अभी थिएटर में रिलीज करने का सही समय नहीं है। लेकिन मैं बता दूं कि हमारी बातचीत चल रही है कि कम से कम 10-15 सिंगल स्क्रीन्स में इसे रिलीज किया जाए। ओटीटी पर आने के एक हफ्ते के बाद हम इसे रिलीज करने की प्लानिंग कर रहे हैं ताकि हमें पता लग सके कि लोग इसे देखकर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।

– आपकी फिल्म का ट्रेलर देखकर लग रहा है कि यह फिल्म किसी बाबा द्वारा बच्ची के यौन शोषण पर आधारित है। क्या यह किसी असली बाबा की कहानी है?

हमारी अदालतों में ऐसे बहुत सारे केसेज़ भरे पड़े हैं और ऐसे बहुत सारे केसेज़ में सजा भी हो चुकी है। यह फिल्म बहुत सारी सच्ची घटनाओं पर आधारित है, किसी एक व्यक्ति पर नहीं। लेकिन हां जिनका किरदार मैं कर रहा हूं, वह एक व्यक्ति हैं पीसी सोलंकी जो जोधपुर के काबिल वकील हैं। हम एक तरीके से उनके माध्यम से फिल्म को, अदालती कार्रवाई और घटनाओं को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन बाकी जो घटनाएं हैं, वह अलग-अलग सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं, किसी एक पर नहीं।

– आजकल तो छोटी-छोटी चीजों पर विवाद हो रहा है। आपकी वेब सीरीज़ में तो कोई बाबा विलेन लग रहा है। आपको विवाद का डर नहीं था?

हमारी नियत इस फिल्म को बनाते हुए बहुत अच्छी थी। हमारा फोकस यह था कि हमारे समाज में छोटी-छोटी बच्चियों के आसपास कितने सारे खतरे मंडरा रहे हैं। उनको कभी भी हवस या शारीरिक शोषण का शिकार बनाया जा सकता है। हमारा पूरा फोकस एक बच्चे की सुरक्षा पर है। हमारी कहानी का फोकस इस बात पर है कि हम अपने समाज में बच्चियों को किस तरह सुरक्षित रख पाएं। हमारा पूरा समाज इसके लिए जिम्मेदार हैं और माता-पिता समेत हम सभी को इसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। हमारा फोकस इस बात पर नहीं है कि अपराधी कौन है, बल्कि हमारा फोकस इस बात पर है कि बच्चों को खतरा उस व्यक्ति से है जो उनका जानने वाला है या उनके माता पिता का जानने वाला है। समाज को अवगत कराना कि बच्चे-बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है, यही हमारा उद्देश्य है।

– आखिर क्यों हमारे समाज में न्याय पाने में इतना समय लग जाता है?

जो मैं पढ़ता हूं और देखता हूं, उससे यह बात तो समझ आती है कि देश में कानून में सुधार को लेकर बहुत सारे लोग बात भी कर रहे हैं और काम भी कर रहे हैं। यह जरूरी भी है ताकि आम आदमी को जल्दी न्याय मिल सके और उसे पूरी जिंदगी कोर्ट के चक्कर ना लगाना पड़े।

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