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42 की उम्र में न्यूजीलैंड की PM ने छोड़ दी कुर्सी, तब शास्त्री जी ने दुनिया को किया था हैरान

नई दिल्ली: अब मेरे पास जज्बा नहीं है… यह कहते हुए नम आंखों से न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने इस्तीफे की घोषणा कर दी है। आज के समय में असमर्थता जताते हुए किसी भी देश के प्रधानमंत्री का इस्तीफा देना आम बात नहीं है। 42 साल की उम्र में पीएम की कुर्सी छोड़ने की खबर वायरल हो चुकी है। सत्ता के लालच भरे माहौल में इस तरह का फैसला असाधारण है, इसलिए पीएम जेसिंडा की पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। हर देश के लोग जेसिंडा से अपने नेताओं की तुलना कर रहे हैं। कुछ घंटे पहले उन्होंने ऐलान किया कि वह अपना पद छोड़ने जा रही हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर 7 फरवरी उनका आखिरी दिन होगा। हर देश के सियासतदानों के लिए जेसिंडा मिसाल हैं। भारत में तो हाल ये है कि कुछ नेता 75-80 साल की उम्र के बाद भी न सिर्फ चुनाव लड़ने की हसरत पाले रहते हैं बल्कि मंत्री पद की तमन्ना भी दिल में बनी रहती है। आलम यह है कि नैतिकता के नाते भी नेता-मंत्री इस्तीफा नहीं देना चाहते जब तक कि पार्टी या विपक्ष का दबाव न हो। अगर इतिहास पलटकर देखें तो भारत में पहले बड़े नेता लाल बहादुर शास्त्री हुए जिन्होंने नैतिकता के नाते इस्तीफा देकर मिसाल पेश की थी। आज न्यूजीलैंड के पीएम के इस्तीफे की खबर आई तो देश के लोगों को शास्त्री जी याद आ गए।

पीएम पद विशेषाधिकारों के साथ कई जिम्मेदारियां भी देता है, जिम्मेदारी यह महसूस करने की भी है कि आप नेतृत्व करने के लिए कितने उचित व्यक्ति हैं और कब नहीं। मुझे पता है कि इस पद के लिए क्या चाहिए। मुझे पता है कि अब मेरे पास वो जज़्बा नहीं है। यही असल बात है।
न्यूजीलैंड की पीएम


रेल हादसा हुआ और शास्त्री जी ने दे दिया इस्तीफा

बात 1956 की है। देश को आजाद हुए 9 साल हो रहे थे और महबूबनगर रेल हादसे में 112 लोगों की जान चली गई। उस समय रेल मंत्री शास्त्री जी थे। उन्होंने बिना किसी दबाव के पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। हालांकि तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने शास्त्री के इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया। 3 महीने बाद एक और घटना घटी। अरियालूर (तमिलनाडु) में रेल दुर्घटना में 114 लोगों के मारे जाने की खबर आई। रेल मंत्री होने के नाते शास्त्री को लगा कि नैतिक रूप से उन्हें पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है क्योंकि वह ऐसे हादसों को रोक नहीं पाए। उन्होंने एक बार फिर इस्तीफा दे दिया। तब नेहरू ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी। देश के पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस बार वह लालबहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं जिससे देश में एक नजीर बने। उन्होंने साफ कहा था कि शास्त्री जी किसी भी तरह से हादसे के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

पीएम हों या मंत्री

दरअसल, पीएम हों या मंत्री या कोई शीर्ष अधिकारी, उन्हें विशेषाधिकारों के साथ कई तरह की चुनौतियां भी मिलती हैं। जेसिंडा अर्डर्न ने भी यही बात कहते हुए कहा कि इस भूमिका को निभाने के लिए हमेशा अप्रत्याशित चीजों के लिए तैयार रहना चाहिए। हम भारत में भी देखते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी सुबह किसी राज्य में होते हैं, दोपहर बाद दिल्ली में बैठक करते दिखते हैं और शाम का अलग प्लान तैयार रहता है। देश के प्रमुख कार्यकारी पोस्ट पर इसी तरह की भागमभाग लगी रहती है।

न्यूजीलैंड की पीएम ने कहा, ‘मेरे कार्यकाल का 6वां वर्ष शुरू होने जा रहा है… मैं यह पद इसलिए छोड़ रही हूं क्योंकि विशेषाधिकारों के साथ कई जिम्मेदारियां भी आती हैं… जिम्मेदारी यह जानने की कि आप नेतृत्व करने के लिए कब सही हैं और कब नहीं।’ उन्होंने आगे कहा कि मुझे पता है कि अब मेरे पास जज्बा नहीं है। यही असल बात है। जैसे ही उनके इस्तीफे की खबर भारत पहुंची, कांग्रेस नेताओं ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारतीय राजनीति में उनके जैसे लोगों की जरूरत है।

जब गोद में बच्चा लेकर मीटिंग में आईं पीएम
पीएम अर्डर्न ने कोरोना महामारी को जिस तरह से काबू किया, उसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी। तीन साल पहले दो मस्जिदों पर हमला हुआ तो वह मुस्लिम समुदाय के सपोर्ट में खड़ी दिखीं। प्रधानमंत्री रहते उन्होंने बच्ची को जन्म दिया तो दुनियाभर में उनकी बात हुई। पीएम जेसिंडा के पार्टनर क्लार्क गेफोर्ड हैं। वह संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में अपने बच्चे के साथ दिखाई दीं तो तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। उन्हें ’21वीं सदी की नारी’ के तौर पर सराहा गया था। आज उन्होंने 21वीं सदी के नेताओं के सामने भी एक उदाहरण पेश किया है।
जयराम बोले, भारतीय राजनीति में चाहिए ऐसे लोग
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पीएम जेसिंडा की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारतीय राजनीति में उनके जैसे लोगों की ज्यादा जरूरत है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘दिग्गज क्रिकेट कमेंटेटर विजय मर्चेंट ने अपने करियर के चरम पर होने के दौरान संन्यास लेने के बारे में एक बार कहा था- तब जाओ जब लोग कहें कि यह क्यों जा रहा है, न कि तब जब लोग पूछें कि ये जा क्यों नहीं रहा है।’

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