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नेपाल में आज एक तरफ चुना जाएगा राष्ट्रपति, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री से जुड़े मुकदमे में सुनवाई, कैसे बदल रही राजनीति?

काठमांडू: नेपाल में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव बृहस्पतिवार को होगा। नेपाली कांग्रेस के राम चंद्र पौडेल और सीपीएन-यूएमएल के सुभाष चंद्र नेमबांग इस पद के लिए दौड़ में हैं। नेपाल के निर्वाचन आयोग ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रपति चुनाव की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। राष्ट्रपति चुनाव में, प्रतिनिधि सभा के दो पूर्व स्पीकर के बीच मुकाबला है। आठ दलीय गठबंधन समर्थित उम्मीदवार राम चंद्र पौडेल (78) हैं, जबकि सीपीएन-यूएमएल की ओर से सुभाष नेमबांग (69) को उम्मीदवार बनाया गया है।

    मौजूदा राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी का कार्यकाल 12 मार्च को समाप्त हो रहा है। निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, मतदान यहां संसद भवन में सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक होगा। आयोग शाम चार बजे से मतगणना शुरू करेगा और शाम सात बजे परिणाम घोषित होगा। नेपाल में राष्ट्रपति का चुनाव ऐसा समय में हो रहा है, जब लगातार देश में एक नई राजनीति अस्थिरता आने की संभावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव की घोषणा के बाद से ही कई दलों ने पीएम पुष्प दहल प्रचंड की सरकार छोड़ दी है।

    एक हफ्ते बाद चुना जाएगा उपराष्ट्रपति

    चुनावी पर्यवेक्षकों के मुताबिक राम चंद्र पौडेल को माओवादियों, नेपाली कांग्रेस और उनके सहयोगियों का समर्थन है, जिससे वह सबसे आगे दिखते हैं। हालांकि क्रॉस वोटिंग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। संसद में 14 सदस्य और प्रांतीय विधानसभा में 28 सदस्यों वाली राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने चुनाव बहिष्कार का फैसला किया है। राष्ट्रपति चुनाव होने के एक सप्ताह के भीतर उपराष्ट्रपति को चुना जाएगा। इस चुनाव में लगभग 880 सदस्य मतदान करेंगे, जिसमें संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्य भी शामिल होंगे।

    प्रचंड से जुड़े मामले में सुनवाई

    हालांकि हर किसी की निगाह चुनाव से ज्यादा मतदान स्थल से एक किमी की दूरी पर मौजूद सुप्रीम कोर्ट पर हैं। यहां उग्रवाद के दौरान एक सामूहिक हत्या के मामले में प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल पर मुकदमा चलाने के लिए एक रिट याचिका पर सुनवाई होने वाली है। इस सुनवाई को लेकर कई दलों ने प्रदर्शन भी किया है। नेपाली कांग्रेस के 28 कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में प्रचंड के खिलाफ मुकदमे की याचिका दायर की। 1996 से 2006 के बीच प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी विद्रोह के दौरान याचिकाकर्ताओं के कम से कम 17 रिश्तेदारों की मौत हुई थी।

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