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जब डूब रही TATA को बचाने के लिए इस महिला ने गिरवी रखे थे अपने गहने, जानिए क्या था टाटा से रिश्ता

नई दिल्ली: देश की सबसे भरोसेमंद कंपनी टाटा (TATA) हमेशा से एक जैसी नहीं रही है। आज सक्सेसफुल बिजनेस स्थापित करने वाली टाटा जमीं से लेकर आसमान तक, सड़क से लेकर आपके किचन तक पर राज करती हैं, लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब टाटा बुरे वक्त से गुजर रही थी। साल 1924 के आसपास टाटा स्टील (TATA Steel) ने कुछ यूं करवट ली कि लेडी मेहरबाई को अपने गहने बेचने पड़े थे। उनकी बेशकीमती चीजों को गिरवा रखना पड़ा था। मशहूर लेखक हरीश भट्ट ने अपनी किताब टाटा स्टोरीज: 40 टाइमलेस टेल्स टू इंस्पायल यू में इस कहानी का जिक्र किया है।


कौन थीं लेडी मेहरबाई टाटा

लेडी मेहरबाई टाटा जमशेदजी टाटा (Sir Dorabji Tata)के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा की पत्नी थीं। 90 के दशक में दशक में जब टाटा स्टील (Tata Steel)बुरे दौर से गुजर रही थी तो दोराबजी टाटा और उनकी पत्नी मेहरबाई टाटा (Meherbai Tata)ने अपनी संपत्ति को गिरवी रखा था। दोनों ने कंपनी को बचाने के लिए अपनी दौलत, गहने जब बेच दिए। मेहरबाई टाटा ने अपने दिल के बेहद करीब रहने वाले जुबली डायमंड (Jubilee Diamond) को गिरवी रखा। कंपनी के प्रति उन दोनों के त्याग को देखते हुए उन्हें गोल्डन हार्ट का नाम दिया गया।


साल 1990 में जुबली डायमंड को अपनी पत्नी मेहरबाई टाटा को गिफ्ट किया था। पेरिस एक्सपोजीशन में इस हीरे को डिस्प्ले किया गया था। उस वक्त जमशेदजी टाटा के बेटे दोराबजी टाटा ब्रिटेन में मौजूद थे। उन्होंने लंदन के मर्चेंट्स से 1 लाख पाउंड में येडायमंड खरीदा और अपनी पत्नी को गिफ्ट किया। इस हीरे का साइज कोहिनूर हीरे से दोगुना था। साल 1904 में सर दोराबजी टाटा टाटा समूह के चेयरमैन बने। प्राइस इन्फ्लेशन , लेबर इश्यूज के कारण टाटा को भारी नुकसान हो रहा था। साल 1923 तक कैश और लिक्विडिटी के कारण कंपनी भारी नुकसान का सामना कर रही थी। कर्मचारियों को पैसा देने तक वक्त नहीं था। हालात इतने बिगड़े कि कंपनी बंद होने की नौबत आ गई।

गहने बेचकर बचाई कंपनी

टाटा स्टील पर आए इस मुश्किल को देखते हुए मेहरबाई टाटा ने बड़ा फैसला लिया। उन्होंने अपने पति से कहा कि वो अपनी निजी संपत्ति, गहने, जुबली डायमंड देने को तैयार है। उन्हें बेचकर या गिरवी रखकर कंपनी को बचा लिया जाए। पत्नी की बातें सुनकर सर दोराबजी टाटा दंग रह गए। उन्होंने अपनी और अपनी पत्नी की सारी निजी संपत्ति गिरवी रखकर पैसा जुटाना शुरू किया। अपनी दौलत को बेचकर दोनों ने करीब 1 करोड़ रुपये इकट्ठा किया। उन्होंने कर्मचारियों की छंटनी करने के बजाए अपनी संपत्ति और निवेश को बेचने का फैसला किया और कंपनी को बचा लिया। उनकी मेहनत और उनका त्याग काम आया। साल 1930 के दशक के टाटा स्टील फिर से फलने-फूलने लगी।

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