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महंगाई पर कंट्रोल से ज्यादा विकास को तरजीह क्यों? ब्याज दर नहीं बढ़ाने के RBI के फैसले के पीछे की असली वजह

नई दिल्ली : ये दोधारी तलवार की तरह है। अर्थव्यस्था को संभालने में सबसे बड़ी दुविधा समझी जाती है। जब महंगाई तेजी से भागती है तो इस पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाने लगता है। इससे विकास पर बुरा असर होता है। कारोबार ठप हो सकते हैं, नौकरियों में छंटनी का दौर शुरू हो सकता है। सवाल ये उठता है कि रिजर्व बैंक के लिए महंगाई पर काबू पाना जरूरी है या विकास को बढ़ावा देना। इस बारे में रिजर्व बैंक की नीति तय करने वाली कमिटी की ताजा बैठक हुई तो उसने साफ तौर पर विकास को चुना है, लेकिन क्यों?

क्या कदम उठे :
 रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमिटी इस तरह के फैसले लेती है। महंगाई पर काबू पाने के लिए उसके पास एक बड़ा औजार है, रीपो रेट में बढ़ोतरी करना। रीपो रेट का मतलब बैंकों के लिए उधार देने की ब्याज दर है। रीपो रेट बढ़ेगा तो आम बैंकों को उधार महंगा मिलेगा, जिससे उनके पास मनी सप्लाई कम होगी। लोन महंगा हो जाएगा। नतीजा ये होगा कि बाजार में भी नकदी की सप्लाई कम हो जाएगी। इससे महंगाई कम होने की उम्मीद रहती है, लेकिन विकास पर असर पड़ सकता है।पिछले साल मई के बाद से रीपो रेट में लगातार बढ़ोतरी की जा रही थी। ब्याज दरों में अब कुल मिलाकर ढाई फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसके बावजूद महंगाई दर फरवरी तक 6 फीसदी से ज्यादा रही है। अब जानकार सलाह दे रहे हैं कि ब्याज दरों को और बढ़ाने से पहले सरकार को थोड़ा रुककर देखना चाहिए।

क्या है लक्ष्य : 
रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है कि वह महंगाई दर को 2 पर्सेंट से कम और 6 पर्सेंट से ज्यादा न होने दे। लक्ष्य यह है कि महंगाई औसतन 4 पर्सेंट के आसपास रहे। इस बार अपना लक्ष्य पाए बिना रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को बढ़ाने का प्रोग्राम टाल दिया।

रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमिटी की जो ताजा मीटिंग हुई, उससे पहले तक हालात अलग थे। कमिटी के अंदर ही ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर असंतोष था। मगर, कमिटी ने सहमति से ब्याज दरों में बढ़ोतरी टालने का फैसला किया। आगे भी इस बढ़ोतरी को टाला जा सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इतना भर कहा है कि हम महंगाई के मामले पर आगे सतर्क रहेंगे।

महंगाई में नरमी 
: ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बीच इस वित्त वर्ष में महंगाई दर 5.2 पर्सेंट रह जाने का अनुमान है। ये समझा जा रहा है कि कि आने वाले समय में महंगाई कम हो सकती है। रबी की फसल अच्छी होने का अनुमान है। मॉनसून भी दमदार रहने का अंदाजा लगाया गया है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी जरूरी कमॉडिटीज की कीमतों में कमी देखी जा रही है। कच्चे तेल की कीमतों में फिलहाल बहुत तेजी के आसार नहीं बताए गए हैं। समझा जा रहा है कि इसी वजह से रिजर्व बैंक की कमिटी ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी टालने का फैसला किया।

आगे क्या होगा: 
बहरहाल, महंगाई इसी तरह रही और ब्याज दरें नहीं बढ़ाई गईं तो गरीबों को महंगाई चुभेगी। ट्रस्ट म्यूचुअल फंड के सीईओ संदीप बागला कहते हैं कि रिजर्व बैंक की कमिटी का फैसला बाजार में ज्यादातर लोगों के विचार से अलग रहा। हमें अनुमान है कि रिजर्व बैंक ने विकास और महंगाई को लेकर जो अनुमान लगाया है, साल के अंत में दोनों उससे कम ही होंगे। इससे ब्याज दरों में और नरमी आ सकती है।

ग्रोथ के साथ :
 रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमिटी के कदम को ग्रोथ के पक्ष में देखा जा रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष में 6.5 फीसदी ग्रोथ रेट का अनुमान है। इस वक्त कम ही देश दुनिया में हैं, जहां इतनी अच्छी विकास दर है। कई ग्लोबल रेटिंग एजेंसियों ने भारत के विकास को लेकर अपने अनुमानित आंकड़ों में कमी की है। ये माना जा रहा है कि दुनिया भर में आर्थिक सुस्ती छा रही है। बैंकिंग सेक्टर में संकट की वजह से वित्तीय स्थिरता के मुद्दे पर शंकाएं जताई जा रही हैं।

हाल के समय में धीमी होती खपत ने आर्थिक जानकारों की चिंता बढ़ाई है। साथ ही निजी निवेश में भी कमी आई है। अमेरिका और यूरोप के सेंट्रल बैंकों ने भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी के सिलसिले को रोका नहीं है। समझा जा रहा है कि बैंकिंग संकट के बाद वहां भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी का दौर थामना पड़ सकता है।

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