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अखबार में विज्ञापन के जरिए नोटिस दो…बिलकिस बानो के दोषी की पैंतरेबाजी पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश

नई दिल्ली : बिलकिस बानो गैंगरेप केस में दोषियों को रिहा किए जाने के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई मंगलवार को भी नहीं हो सकी। इसकी वजह थी कि मामले में रिहा किए गए एक दोषी को नोटिस नहीं दिया जा सका। इसकी वजह थी कि दोषी के घर ताला लगा था और उसके रिश्तेदारों ने नोटिस स्वीकार किए जाने से इनकार कर दिया। दोषी के इस पैतरें पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस को अखबार में विज्ञापन के रूप में प्रकाशित कराने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि गुजराती और अंग्रेजी समेत स्थानीय अखबार में सावर्जनिक नोटिस प्रकाशित कराया जाए।


11 जुलाई के लिए टली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिजनों की हत्या के सभी 11 दोषियों को पिछले साल सजा में छूट दिये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई मंगलवार को 11 जुलाई तक के लिए टाल दी है। जस्टिस के. एम. जोसेफ, जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने उन दोषियों को फिर से नोटिस जारी करने का निर्देश दिया, जिन्हें नोटिस तामील नहीं हो सका है। पीठ ने उन दोषियों के लिए गुजराती और अंग्रेजी सहित स्थानीय समाचार-पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया, जिन्हें नोटिस तामील नहीं हो सका है।


ताकि सुनवाई की अगली तारीख पर समय न खराब हो

जस्टिस ने कहा कि समाचार-पत्रों में प्रकाशित किये जाने वाले नोटिस में सुनवाई की अगली तारीख (11 जुलाई) का भी उल्लेख किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘हम यह प्रक्रिया इसलिए अपना रहे हैं, ताकि सुनवाई की अगली तारीख पर समय न खराब हो और सुनवाई आगे बढ़ सके।’ सुनवाई की अगली तारीख 11 जुलाई को नयी पीठ गठित किये जाने की संभावना है, क्योंकि पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टि जोसेफ 16 जून को रिटायर होने वाले हैं। जस्टिस जोसेफ का अंतिम कार्यदिवस 19 मई होगा। सुप्रीम कोर्ट में 20 मई से दो जुलाई तक ग्रीष्मावकाश है।


15 अगस्त को जेल से किया था रिहा

शीर्ष अदालत ने दो मई को भी मामले की सुनवाई उस वक्त टाल दी थी, जब कुछ दोषियों के वकीलों ने नोटिस तामील न होने पर आपत्ति दर्ज कराई थी। गुजरात सरकार ने इस मामले के 11 दोषियों को सजा में छूट देते हुए पिछले साल 15 अगस्त को उन्हें जेल से रिहा कर दिया था। दोषियों की रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने याचिकाएं दायर की हैं। बिल्कीस उस वक्त 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती भी थीं, जब गुजरात के गोधरा कांड के बाद शुरू हुए दंगों में उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और तीन साल की उनकी बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी।

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