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आईएमएफ को पाकिस्तान पर रत्ती भर भी नहीं भरोसा, कर्ज देने से पहले मुस्लिम दोस्तों से मांग रहा ‘गारंटी’

इस्लामाबाद : कई कठोर शर्तों और लंबी बातचीत के बाद भी पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के बीच समझौता नहीं हो पा रहा है। आईएमएफ पाकिस्तान को वित्तीय सहायता पर सऊदी अरब और यूएई सहित द्विपक्षीय देशों से वेरिफिकेशन कर रहा है। पाकिस्तान को उम्मीद है कि स्टाफ-लेवल एग्रीमेंट साइन करने के लिए द्विपक्षीय मित्र उसे वित्तीय सहायता मुहैया कराएंगे। पाकिस्तान के कई बार अनुरोध के बाद भी सऊदी अरब और यूएई इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। दूसरी तरफ आईएमएफ ने संकटग्रस्त बांग्लादेश और श्रीलंका को आर्थिक मदद का ऐलान कर दिया है।

सीनेट स्टैंडिंग कमिटी ऑन फाइनेंस में हिस्सा लेने के बाद पाकिस्तान की वित्त राज्य मंत्री डॉ आइशा गौस पाशा ने कहा कि आईएमएफ के साथ बातचीत जारी है। अब इकलौता बकाया मुद्दा आईएमएफ का सऊदी अरब और यूएई सहित द्विपक्षीय देशों से बाहरी वित्तपोषण पर पुष्टि का है, जो प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा, ‘ऐसे संकेत हैं कि द्विपक्षीय मित्रों से बहुत जल्द वित्तीय सहायता मिल सकती है। यह मदद आईएमएफ के साथ स्टाफ लेवल एग्रीमेंट को अंतिम रूप देने में मदद करेगी।’

‘पाकिस्तान को नहीं होगी आईएमएफ की जरूरत’

आइशा गौस ने स्पष्ट किया कि पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी का कोई सुझाव नहीं है। इस बीच पाकिस्तान फॉरेन एक्सचेंज एसोसिएशन के अध्यक्ष मलिक बोस्टन ने सीनेट पैनल को बताया कि वे अगले दो साल तक सरकार को हर महीने 1 अरब डॉलर की मदद दे सकते हैं, जिसके बाद आईएमएफ की कोई जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि पिछले 30 साल में करीब 180 अरब डॉलर विदेश भेजे गए। उन्होंने कहा कि वे 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद 10 अरब डॉलर सिस्टम में लेकर आए।

आईएमएफ के साथ एग्रीमेंट में क्यों लग रहा समय?

सीनेट समिति की बैठक में आइशा गौस ने कहा कि नौवीं समीक्षा के पूरा होने में बाहरी वित्तीय मदद एकमात्र अड़चन है। उम्मीद है कि यह जल्द दूर हो जाएगी। चीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समेत मित्र देशों से सकारात्मक संकेत मिले हैं। मंत्री ने कहा कि इस प्रक्रिया में समय लग रहा है क्योंकि आईएमएफ को मित्र देशों से पुष्टि चाहिए और वेरिफिकेशन के बाद समझौते को अंतिम रूप दिया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि तीनों देशों ने पाकिस्तान का समर्थन किया है।

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