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संकट महाराष्ट्र का, नजीर बना अरुणाचल… इन दो सवालों को लेकर क्यों असमंजस में है सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: 2016 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एक फैसला सुनाया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट के जज अब असमंजस में पड़ गए हैं। अरुणाचल प्रदेश के नबाम-रेबिया मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की याचिका पहले से लंबित है तो वह विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं ले सकते हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहे जज अब यह निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि इसे जारी रखा जाए, संशोधित किया जाए या खत्म कर दिया जाए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दोनों पहलू पर फैसला करना एक बेहद पेचीदा संवैधानिक मसला बन चुका है। इसका बड़ा असर होगा। दरअसल, शिवसेना के उद्धव ठाकरे वाले धड़े ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि अयोग्यता याचिकाओं पर विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों को लेकर 2016 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए मामले को सात जजों की पीठ के पास भेजा जाए।


नबाम रेबिया केस को दोबारा देखने की जरूरत नहीं है। यह मामला अब सिर्फ एकैडमिक हो चुका है क्योंकि उद्धव ठाकरे का इस्तीफा हो चुका है। उन्होंने तब इस्तीफा दे दिया था जब उन्हें लगा कि वह फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाएंगे।

SC के सामने दो गूढ़ प्रश्न

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पीठ के सामने दलील दी कि नबाम रेबिया मामले में निर्धारित कानून पर फिर से विचार करने की जरूरत है। सिब्बल ने कहा, ‘हमारे लिए नबाम रेबिया और 10वीं अनुसूची पर फिर से विचार करने का समय है क्योंकि इससे बहुत नुकसान हुआ है।’ पीठ ने कहा कि अगर रेबिया जजमेंट सही है तो खुद को हटाए जाने की अर्जी लंबित होने की स्थिति में दलबदल कानून के तहत वह विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला नहीं ले सकते हैं। इसका परिणाम एक पार्टी से दूसरे में ह्यूमन कैपिटल के मुक्त प्रवाह की इजाजत देता है। दूसरी तरफ, अगर खुद को हटाए जाने की याचिका के बाद भी स्पीकर को रोका नहीं जाता है तो वह विरोधी विधायकों को अयोग्य ठहरा सकते हैं। इसका मतलब यह होगा कि कोई नेता संवैधानिक पद पर बना रहेगा भले ही उसकी अपनी पार्टी का बहुमत उसके साथ न हो।

नबाम रेबिया केस में कहा गया है कि स्पीकर के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव पेंडिंग है तो वह खुद घेरे में हैं। वह अयोग्यता पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं… महाराष्ट्र में एक राजनीतिक पार्टी से लोगों का दूसरे में फ्री फ्लो हुआ। कपिल सिब्बल की दलील को मानें तो जो पार्टी नेता बहुमत खो चुका है, वह स्पीकर से कहकर विरोध करने वाले MLA को अयोग्य घोषित कराए और यथास्थिति बना ले जबकि स्पीकर को हटाने का भी प्रस्ताव पेंडिंग है। दोनों स्थिति में जो बात मानी जाएगी, उसके गंभीर प्रभाव होंगे।
कोर्ट ने कहा कि सवाल ये है कि क्या नबाम रेबिया फैसले में गैप को पांच जजों की बेंच भर सकती है या हमें इसे सात जजों की बेंच के पास भेजना चाहिए। आज भी यह सुनवाई जारी रह सकती है। उद्धव ठाकरे गुट ने मामले को शीर्ष अदालत की सात जजों की पीठ के पास भेजने की बात कही है।
सिब्बल ने कहा कि 10वीं अनुसूची को राजनीतिक नैतिकता के उद्देश्य की पूर्ति करने वाला माना जाता था, लेकिन यह इसे उलट रहा है। 10वीं अनुसूची अपने राजनीतिक दल से निर्वाचित और नामित सदस्यों के दलबदल को रोकती है। इसमें दलबदल के खिलाफ कड़े प्रावधान शामिल हैं। सिब्बल ने दावा किया कि शिंदे गुट ने गैरकानूनी तरीके से एक विधानसभा अध्यक्ष को नियुक्त किया जो ठाकरे गुट के खिलाफ पूरी तरह से पक्षपाती हैं।
नबाम-रेबिया मामला क्या था
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के बर्खास्त सीएम नबाम तुकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था। SC ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगाई थी, जिसमें अदालत ने कांग्रेस के बागी 14 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने पर रोक लगा दी थी। SC ने राज्यपाल के उस फैसले को गलत ठहराया था, जिसमें उन्होंने विधानसभा सत्र को जनवरी 2016 की जगह दिसंबर 2015 में ही बुलाने का फैसला किया था। तब विधानसभा अध्यक्ष रेबिया भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे।

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