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नेपाल ने भारत से निपटने के लिए चीन से किया था समझौता, 7 साल में मिला नहीं एक ढेला, ड्रैगन की खुली पोल

काठमांडू: नेपाल ने भारत से दुश्मनी मोल लेकर चीन के साथ दोस्ती की। तब नेपाल को यह उम्मीद थी कि जो मदद भारत से मिलती है, उसे चीन पूरा कर देगा। ऐसे में चारों और से जमीन से घिरा यह देश भारत पर निर्भर नहीं रहकर एक बड़ा संदेश दे पाएगा। पर, नेपाल को चीन के धोखे वाले अतीत के बारे में शायद जानकारी नहीं थी। दरअसल, नेपाल ने चीन के साथ व्यापार और ट्रांजिट समझौते पर सात साल पहले हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के तहत नेपाल को किसी तीसरे देश के साथ व्यापार के लिए चीन के सात बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत मिली थी। लेकिन, आज तक एक भी शिपमेंट चीनी बंदरगाह के रास्ते नहीं भेजा जा सका है।

भारत का डर दिखाकर चीन ने नेपाल से किया समझौता

दरअसल, राजशाही के खत्म होने के बाद नेपाल में संविधान सभा का गठन किया गया। चूंकि नेपाल में नया-नया लोकतंत्र आया था, ऐसे में सभी दल खुद को बड़ा दिखाने के लिए आपसी खींचतान में जुटे थे। इस कारण नेपाल में संविधान की घोषणा में देरी हो रही थी। इसकी सबसे बड़ी वजह नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी थी। तब भारत ने नेपाल के संविधान की घोषणा में देरी करने पर सख्त नाराजगी जताई थी। इसके जवाब में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थकों ने भारतीय ट्रकों, लोगों और समर्थक नेताओं पर हमले शुरू कर दिए। ऐसे में सुरक्षा को देखते हुए भारत की ओर से नेपाल जाने वाले ट्रकों ने आवाजाही रुक गई थी। तब कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसा प्रचार किया कि भारत ने नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी कर दी है।

नेपाल को 7 चीनी बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत मिली

इस प्रचार से तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन के साथ दोस्ती बढ़ाने का मौका मिल गया। वे अप्रैल 2016 में चीन की आधिकारिक यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों पक्षों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया, जो नेपाल को चार चीनी बंदरगाहों तक पहुंच प्रदान करता है। इसके अलावा तीन ग्राउंड पोर्ट को भी नेपाल के निर्यात के लिए तय किया गया। इसके जरिए नेपाल को तियानजिन, शेनझेन, लियानयुंगांग और झांजियांग के बंदरगाह और लान्झू, ल्हासा और शिगात्से तीन ग्राउंड पोर्ट ने इस्तेमाल की इजाजत मिल गई। इस समझौते से नेपाल को चीन से साथ लगी सीमा पर छह डेडिकेटेड ट्रांजिट पाइंट्स के माध्यम से निर्यात करने की भी अनुमति मिली।


नेपाली राष्ट्रपति ने चीन जाकर समझौते को किया फाइनल

दोनों पक्षों ने ट्रांजिट ट्रांसपोटेशन पर समझौते के निष्कर्ष पर संतोष व्यक्त किया और बीजिंग में 23 अप्रैल 2016 को समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के एक क्लॉज के अनुसार, दोनों पक्ष एक प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए तुंरत बातचीत करने वाले थे, जो समझौते का अभिन्न अंग होता। बाद में, अप्रैल 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की चीन की राजकीय यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद ट्रांजिट और ट्रांसपोटेशन समझौते को लागू करने के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे। तत्कालीन विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली और चीन के परिवहन मंत्री ली शियाओपेंग ने अपनी-अपनी सरकारों की ओर से समझौते पर हस्ताक्षर किए।

सात साल में एक भी शिपमेंट चीन के रास्ते नहीं भेजी गई

लेकिन, अब नेपाल के उद्योग, वाणिज्य और आपूर्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है कि पिछले सात साल में दोनों देशों के बीच एक भी शिपमेंट नहीं पहुंचा है। नेपाल को लगता है कि दोनों देशों के बीच प्रोटोकॉल को ठीक ढंग से लागू नहीं किया जा सका है। ऐसे में नेपाल ने इसके लिए चीन के साथ एक बैठक का प्रस्ताव बीजिंग को भेजा है, लेकिन अभी तक उसका जवाब नहीं मिला है। मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव ने कहा कि प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए हमने चार महीने पहले एक संयुक्त बैठक के लिए एक अनुरोध भेजा था, लेकिन अभी तक चीनी पक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

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