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गजब की खोज, नंबरों का महारथी.. डी आर कापरेकर को दुनिया यूं नहीं करती है सलाम!

नई दिल्ली: दुनिया में आज भारतीय वैज्ञानिकों की हर तरफ तारीफ हो रही है। कुछ दिन पहले ही कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक PhD कर रहे एक भारतीय छात्र ने ढाई हजार साल पुरानी पाणिनी के अष्टाध्यायी में व्याकरण की समस्या को हल किया है। लेकिन भारत के कुछ ऐसे भी लोग रहे हैं, जिन्होंने दुनिया को ऐसी थियरी दी जिसपर सबको नाज होता है। एक ऐसे ही भारतीय शख्स थे डी आर कापरेकर ( D R Kaprekar)। एक महान गणितज्ञ। भूले-बिसरे भारतीय सुपर ह्यूमन सीरीज में हम आपको इस धुरंधर शख्स की कहानी बताएंगे। ‘कापरेकर स्थिरांक’ (Kaprekar’s Constant) ने इस भारतीय गणितज्ञ को पूरी दुनिया में बड़ी पहचान दी। इन्होंने कापरेकर संख्या और डेमलो संख्या को बारे में दुनिया में को बताया था। कापरेकर ने 1946 में एक ऐसे अंक के बारे में दुनिया को बताया था, जिसे जान सब चौंक गए थे। इसे संख्या कापरेकर स्थिरांक के नाम से जाना गया और वह नंबर था 6174।

कापरेकर को हो गया था नंबरों से प्यार

महाराष्ट्र के धहानू (Dahanu) में 17 जनवरी 1905 को जन्मे कापरेकर चुटकियों में गणित के सवाल हल कर देते थे। 8 साल की उम्र में ही कापरेकर की मां का निधन हो गया था। कापरेकर को उनके पिता ने पाला-पोसा। कापरेकर के पिता वैसे तो पेशे से क्लर्क थे लेकिन उनकी ज्योतिषी में काफी रुचि थी। वैसे तो ज्योतिषी में मजबूत गणित की तो जरूरत नहीं होती है पर इतनी जानकारी तो चाहिए ही होती है कि आप नंबरों की सही गणना कर सकें। बस यहीं से कापरेकर को नंबरों से प्यार हो गया। उनके पिता से उन्हें नंबरों का ज्ञान बचपन में ही मिल गया था।

नंबरों के जादूगर की कहानी
कापरेकर ने अपनी हाईस्कूल की शिक्षा ठाणे से की थी। अपनी युवावस्था में उन्होंने कई गणितीय पहेली को सुलझाया। उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई 1923 में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज (Fergusson College) उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की। कापरेकर शुरू से पढ़ाई में काफी होनहार थे। उन्होंने 1927 में आर पी परांजपे मैथमेटिकल प्राइज जीता था। यह पुरस्कार किसी छात्र के ऑरिजनल मैथमैटिक्स आइडिया के लिए दिया जाता था। कापरेकर नंबर गेम के मास्टर थे और उन्होंने एक अनोखी थियरी दी थी। 1929 में कापरेकर ने यहां से ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल की। इसी साल वह देवलाली में बतौर गणित टीचर नियुक्त किए गए। यह जगह नासिक से बेहद करीब था। इसके बाद कापरेकर ने बतौर टीचर रिटायर होने तक यहीं गुजारा। 1962 में 58 साल की उम्र में वह रिटायर हो गए थे।

कभी कापरेकर पर हंसते थे लोग

कापरेकर अपने नंबरों के जुनून के प्रति गजब के आग्रही थे। वह न केवल एक शानदार स्कूल टीचर थे बल्कि अपने नंबरों के ज्ञान को वह छात्रों में बांटते भी रहते थे। हालांकि, कापरेकर के नंबर थियरी पर कई भारतीय गणितज्ञ हंसते भी थे। कापरेकर ने किसी तरह से गणित के कुछ कम मशहूर जर्नल में अपने आइडिया पब्लिश करवाने में सफल रहे थे। हालांकि, कुछ पेपर तो वह पैंपलेट के रूप में ही छपवा पाए थे। कापरेकर दुनिया में आज बड़े नाम हैं लेकिन यहां तक पहुंचने में उन्हें काफी पापड़ बेलने पड़े थे।

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