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भूलिए मत, कंपनी ने ले रखे हैं आपके साइन! ऑफिस के बाहर भी एक गलत बिहेवियर खा सकता है नौकरी

नई दिल्ली : पिछले दिनों आपने खबरों में एक घटना के बारे में खूब पढ़ा होगा। यह एयर इंडिया की फ्लाइट में एक व्यक्ति के अपनी महिला सहयात्री पर पेशाब (Air India Urination Case) करने का मामला था। इसके बाद आरोपी शंकर मिश्रा (Shankar Mishra) को उसकी कंपनी ने निकाल दिया था। यह मामला काफी गंभीर था, इसलिए कंपनी का यह एक्शन सरप्राइज करने वाला नहीं हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि अपराध ऐसा ही हो। अपने पार्टनर के साथ दुर्व्यवहार करना, पालतू जानवर को लात मारना या शराब के नशे में झगड़ा करना..। अगर आपको लगता है कि ऑफिस के बाहर आपका बिहेवियर आपका निजी मामला है, तो लगता है आपने अपना ऑफिस कॉन्ट्रैक्ट ठीक से नहीं पढ़ा है। ऑफ-ड्यूटी गलत बिहेवियर (Off-Duty Bad Behaviour) के बारे में सोशल मीडिया पर एक वीडियो या ट्वीट कर्मचारी के लिए बहुत भारी पड़ सकता है। भले ही ऑफिस में शानदार परफॉर्मेंस रहा हो, लेकिन आपकी जॉब भी जा सकती है।

बीते हफ्ते फाइनेंस कंपनी वेल्स फार्गो (Wells Fargo) ने अपने वाइस प्रेसिडेंट शंकर मिश्रा को बाहर निकालने में जरा भी देर नहीं लगाई थी। इंडस्ट्री प्रोफेशनल्स का कहना है कि फ्लाइट में पेशाब की यह खबर कंपनी के लिए हानिकारक थी।

प्रोफेशनल और पर्सनल टाइम के बीच का फर्क हो रहा खत्म

एचआर फर्म इंटरवीव कंसल्टिंग की सीईओ निर्मला मेनन (Nirmala Menon) कहती हैं कि वर्क फ्रॉम होम ने पेशेवर और पर्सनल टाइम के बीच की रेखाओं को और धुंधला कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘एक कर्मचारी यह तर्क दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या अपने पालतू जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करता है, यह उसका निजी मामला है। लेकिन अगर कोई इसकी शिकायत कर दे, तो कंपनियां कड़ी कार्रवाई करती हैं।’ सीनियर लीडरशिप के रोल्स और भी अधिक जांच के दायरे में हैं।

ऑफिस पार्टीज में बुरा व्यवहार पड़ सकता है भारी

कॉर्पोरेट ऑफसाइट्स और ऑफिस पार्टियों में अनुचित आचरण भी कर्मचारियों को परेशानी में डाल सकता है। भले ही MeToo के आरोप मुकदमों के मामले में बहुत अधिक न हों, लेकिन इसने कई कंपनियों को सोशल इवेंट्स में डर्टी डांसिंग और नशे में मजाक करने जैसे कृत्यों पर भी एक्शन लेने पर प्रेरित किया है।

भारी-भरकम कोड ऑफ कंडक्ट

जैसे-जैसे कॉर्पोरेट इमेज कमजोर होती जाती हैं, कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट मोटे होते गए हैं। एम्प्लॉयर, विशेष रूप से बड़ी एमएनसी और दिग्गज कंपनियों के पास भारी-भरकम नीतियां और कोड ऑफ कंडक्ट हैं। इस पर कर्मचारी कंपनी जॉइन करते समय हस्ताक्षर करते हैं। फार्मा कंपनी ल्यूपिन के पास एक अच्छी तरह से डिफाइन्ड कोड ऑफ कंडक्ट है। इसमें यह बताया गया है कि वर्कप्लेस और उसके बाहर क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

किसी भी चूक की होती है जांच

ल्यूपिन प्रेसिडेंट, ग्लोबल एचआर, यशवंत महादिक कहते हैं, ‘प्रत्येक कर्मचारी इस पर हस्ताक्षर करता है। इसकी स्वीकृति की पुष्टि करता है। सभी कर्मचारियों को समय-समय पर इसके बारे में याद दिलाया जाता है। कोड ऑफ कंडक्ट के पालन में किसी भी चूक को बहुत गंभीरता से लिया जाता है। इसकी जांच की जाती है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए इसकी गंभीरता को देखते हुए कार्रवाई की जाती है।’

स्पष्ट नहीं हैं नियम

लेकिन अच्छा या बुरा बिहेवियर में क्या आता है, यह ऑफिस कॉन्ट्रैक्ट की तरह ब्लैक एंड व्हाइट नहीं है। कोलकाता के उस प्रोफेसर को याद करें जिसे इसलिए इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि एक छात्र के पिता ने इंस्टाग्राम पर उसकी स्विमसूट की तस्वीरों के बारे में शिकायत की थी। इस मामले ने उनकी प्राइवेसी और सेक्सिस्ट दोहरे मानकों के बारे में बहस छेड़ दी थी। एक और उदाहरण बताते हैं। एक कर्मचारी को इसलिए निकाल दिया गया, क्योंकि उसकी गुटखा चबाने की आदत एक ग्राहक को अच्छी नहीं लगी। काम पर कर्मचारी की परफॉरमेंस ने मामले को उसके पक्ष में नहीं झुकाया।

डगमगाता रहता है कंपनी का नजरिया

कुछ लोगों का कहना है कि इस तरह के कृत्यों और व्यवहार के लिए एक संगठन की प्रतिक्रिया सोशल रिस्पांस पर निर्भर करती है। एक्सफेनो के को-फाउंडर कमल कारंत कहते हैं कि कर्मचारियों के कदाचार का आकलन करने और प्रतिक्रिया देने के लिए नियोक्ताओं के पास डगमगाने वाला नैतिक कम्पास होता है। वह कहते हैं कि सीनियरिटी और मीडिया स्पॉटलाइट जैसे कारक कुछ वेरिएबल्स हैं, जो कंपनी के रुख को प्रभावित करते हैं।

सीनियर पोस्ट पर हैं तो अलग ट्रीटमेंट

कारंत ने कहा, ‘मुझे याद है कि एक बार मैं एक होटल में रुका था जहाँ एक बड़ी MNC की पार्टी थी। दो वाइस प्रेसिडेंट्स में कहासुनी हो गई, जो मारपीट में बदल गई। मुझे पता चला कि दोनों वीपी को बस अलग-अलग होटलों में रहने के लिए कहा गया था और पार्टी जारी रहा। जब मैंने उन्हें कुछ साल बाद ट्रैक किया, तब भी वे वहीं थे। उनमें से एक अब एक प्रतिस्पर्धी फर्म का सीईओ है।’ सिंपलीएचआर के को-फाउंडर रजनीश सिंह का कहना है कि कंपनी कर्मचारियों से क्या उम्मीद करती है, इस बारे में स्पष्ट समझ होनी चाहिए।

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