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जैसी फिल्में दोस्तों और फैमिली के साथ देखता हूं वैसी ही फिल्में खुद साइन भी करता हूं- नानी

तेलुगू फिल्मों के सुपरस्टार नानी की मक्खी और जरसी जैसी सुपरहिट फिल्में हिंदी के तमाम दर्शकों ने देखी हैं। अब उनकी फिल्म दशहरा हिंदी समेत कई भाषाओं में पैन इंडिया रिलीज हो रही है। हाल ही में दिल्ली आए नानी ने हमसे खास बातचीत की। उन्होंने इस इंटरव्यू में बॉक्स ऑफिस से लेकर साउथ vs बॉलीवुड से लेकर अजय देवगन की भोला पर रिएक्ट किया। पढ़िए नानी का पूरा इंटरव्यू।

आजकल साउथ इंडिया से एक के बाद फिल्में हिंदी में डब होकर रिलीज हो रही हैं। इस ट्रेंड के बारे में आप क्या कहेंगे?
मेरे ख्याल से यह बहुत अच्छा ट्रेंड है। आजकल इस ट्रेंड के चलते लोगों को अच्छा सिनेमा देखने को मिल रहा है। जल्द लोग सिनेमा को लोग हमारा तुम्हारा नहीं कहेंगे, बल्कि वे सिर्फ अच्छा सिनेमा ही देखेंगे। बेशक इस ट्रेंड के चलते हरेक इंडस्ट्री के फिल्म निर्माता और अच्छी फिल्में बनाने की कोशिश करेंगे और दर्शकों को अच्छा सिनेमा देखने को मिलेगा।

लेकिन तमिल, तेलुगू और कन्नड़ से आईं चुनिंदा फिल्में ही हिंदी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर पा रही हैं?
इसकी वजह यह है कि आजकल दर्शकों को स्टैंडर्ड ऊंचा हो गया है। अब वे कह रहे हैं कि मुझे कम से कम इस स्टैंडर्ड की फिल्में दिखाओ, तो मैं उसके लिए सिनेमा जाऊंगा। मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी चीज है, जिससे हमारी पूरी इंडस्ट्री का लेवल अप होगा और सभी अच्छी फिल्में बनाने की कोशिश करेंगे। बेशक दर्शकों का फैसला सबको मानना होगा।

कहा जा रहा है कि कोरोना के बाद दर्शकों की चॉइस बदल गई है। इसलिए बॉलीवुड, साउथ या हॉलीवुड किसी की फिल्में अच्छा नहीं कर रही हैं?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि मैं तो पिछले दो तीन सालों के बॉक्स ऑफिस से बहुत ज्यादा उत्साहित हूं। कोरोना के बाद बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों का ओवरऑल प्रदर्शन बेहतर हुआ है। इसका मतलब है कि दर्शकों की सिनेमा में वापसी हुई है। हालांकि इतना बदलाव जरूर आया है कि पहले जहां किसी फिल्म को कोई दर्शक देखता था, तो किसी फिल्म को कोई दर्शक। लेकिन आजकल अगर कोई फिल्म अच्छी है, तो उसे हर कोई देख रहा है। ऐसे में, आपको अपनी फिल्म को कॉन्टेंट के लेवल पर बेस्ट बनाने की जरूरत है, जिसे हरेक दर्शक देखना पसंद करे। अगर आपकी फिल्म एवरेज है, तो दर्शक उसे पहले दिन ही नकार देंगे।

कोरोना से पहले साउथ फिल्मों की रीमक अच्छी में चल रही थीं। लेकिन आजकल ऑडियंस इन्हें नकार रहे हैं। क्या वजह मानते हैं आप?
मेरा मानना है कि जब कोई दर्शक सिनेमा जाता है, तो उसका एक मोड होता है। अगर उस दिन वह एक्शन मोड में है, तो उसे फैमिली फिल्म पसंद नहीं आएगी। दरअसल, जब से मैं बच्चा था, तब से फिल्मों की सफलता असफलता का यही सिलसिला है। बस तब इतना ज्यादा मीडिया और सोशल मीडिया नहीं था। जबकि आजकल मीडिया की अधिकता के कारण किसी फिल्म पर इतने सारे लोगों की राय सामने आ जाती है। यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। हालांकि बॉलीवुड ने पहले से ही शानदार फिल्में लाने का सिलसिला शुरू कर दिया है और मुझे लगता है कि आगे उनकी फिल्में और अच्छा करेंगी।

आजकल लोगों को किस तरह का सिनेमा देखना पसंद है?
मेरा मानना है कि आजकल लोगों को ऐसा सिनेमा पसंद आता है, जिसमें उन्हें अपने आसपास की दुनिया नहीं आए। वे सिनेमा में जाकर बड़े पर्दे पर ऐसा कुछ नहीं देखना चाहते, जो कि वे रोजाना देखते रहते हैं। सिनेमा ऐसा होना चाहिए कि सिनेमाघर में पहुंचते ही लोग अपना सारा स्ट्रेस भूल जाएं और दो-तीन घंटों के लिए किसी दूसरी दुनिया में पहुंच जाएं।

दिल्ली आकर कैसा लग रहा है आपको‌?
मेरी फिल्म पहली बार हिंदी समेत देशभर की कई भाषाओं में रिलीज हुई है। इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने के साथ ही इसे देशभर में रिलीज करने का हमारा प्लान था। इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान उत्तर भारत के तमाम शहरों में जाने का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। मैंने सिर्फ हिंदी भाषी शहरों को देखा, बल्कि यहां के कुजीन भी ट्राई किए। और अगर बात दिल्ली की करूं, तो राजधानी के बारे में हमेशा मेरी सोच यही रही है कि यहां सभी राजनेता रहते हैं। जब भी हम हैदराबाद से फ्लाइट लेते हैं, तो उसमें कोई ना कोई नेता सफर कर रहे होते हैं और एयरपोर्ट पर सिक्युरिटी वाले उनका इंतजार करते मिलते हैं। लेकिन इस बार दिल्ली में फैंस के बीच जाकर मैंने महसूस किया कि यहां पर बहुत ही प्यारे लोग रहते हैं।

आपकी फिल्म दशहरा का अजय देवगन की भोला के साथ क्लैश हुआ है। क्या कहेंगे आप?
मैं इसे क्लैश नहीं कहूंगा। आपको बता दूं कि मेरी फिल्म मक्खी जब हिंदी में रिलीज हुई, तो अजय देवगन सर ने मुझे काफी सपोर्ट किया था। मैं अपने फैंस से कहना चाहूंगा कि आप भोला और दशहरा दोनों फिल्में देखें। बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि आप सुबह के शो में भोला देखें और शाम के शो में दशहरा देखें।

बतौर सुपरस्टार आपका फिल्मों को सिलेक्ट करने का क्या पैमाना होता है?
मैं इस मामले में एकदम दर्शकों की तरह सोचता हूं। किसी फिल्म की स्किप्ट सामने आने पर उसे पढ़ते वक्त मैं यही सोचता हूं कि अगर मैं अपनी फैमिली और दोस्तों के साथ सिनेमा गया हूं, तो क्या मुझे यह फिल्म देखकर मजा आएगा। क्या मैं इस फिल्म को देखकर इतना एक्साइटेड हो जाऊंगा कि जाकर अपने तमाम जानने वालों से कहूंगा कि इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए। बस मेरा किसी फिल्म को साइन करने का यही पैमाना होता है।

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